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लघुकथाएँ - देश - सुरेश शर्मा
प्रार्थना

भीड़ भरे बाजार में सब्जी का ठेला लगाने के लिए उसे सुबह आते से ही नगर निगम कर्मचारियों को ‘वसूली’ देना पड़ती थी। यातायात पुलिस वाले को प्रतिदिन शाम को तीस रुपए देने पड़ते थे, ताकि यातायात सुचारु रूप से चल सके।
आज शाम को ठेले पर ग्राहकों की अच्छी–खासी भीड़ जमा थी। उसको ग्राहकों के बीच व्यस्त देखकर पुलिसवाला एक तरफ खड़ा हो गया। उसने हाथ में पकड़ा हुआ डण्डा बगल में दबा लिया था।
ग्राहकों से फु्र्सत पाते ही वह पुलिसवाले को देने के लिए रुपए इकट्ठे कर ही रहा था, तभी एक भिखारी दुआएँ देता हुआ आ खड़ा हुआ। एक का सिक्का उसके बर्तन में डालने के बाद पुलिस वाले को रुपए थमाते हुए उसने झुँझलाकर कहा–‘दिन भर भीख माँगनेवाले परेशान कर डालते हें, साब! भगवान जाने कब इनसे पीछा छूटेगा।’

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