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‘उन्नीसवाँ अंतर्राज्यीय लघुकथा सम्मेलन, 2010’ सम्पन्न
राजस्थान साहित्य एकादमी : लघुक
 
   
     
 
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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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चर्चा में
लघुकथा सम्मेलन रायपुर 16-17/2/ 2008
 
सृजन सम्मान छत्तीसगढ़ का अंतर्राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन रायपुर में संपन्न।
रायपुर (छत्तीसगढ़)में छठे अखिल भारतीय साहित्य महोत्सव का आयोजन 16–17 फरवरी को दूधाधारी सत्संग भवन में किया गया।
 
 
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने की। इस सत्र के अध्य़क्ष थे श्री कमल किशोर गोयनका। सत्रारम्भ श्री सत्यनारायण शर्मा–अध्यक्ष सृजन–सम्मान के वक्तव्य से हुआ। इस अवसर पर श्री केशरी नाथ त्रिपाठी को राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल सद्भावना सम्मान प्रदान किया गया।
अध्यक्ष मण्डल से श्री मोहनदास नैमिशराय ने कहा –‘मानवता का धर्म सबसे बड़ा धर्म है।
 
 
अनुभूति अभिव्यक्ति की सम्पादिका श्रीमती पूर्णिमा वर्मन ने कहा–‘हिन्दी के वैश्वीकरण के लिए वेब से जुड़ने का प्रयास किया जाए।
 
 
श्री विश्वनाथ सचदेव (सम्पादक : नवनीत) ने कहा–हिन्दी में लघुकथा की स्थिति ‘लघुमानव’ जैसी है। लघुकथा का अपना महत्त्व है। वह ‘सतसैया के दोहरे’ जैसी है–छोटी–छोटी बातों से बड़े गहरे अर्थ देना।’ श्री केशरी नाथ त्रिपाठी ने कहा–‘लघुकथा के स्वरूप को समझने के लिए वृहद् लक्ष्य सामने रखना पड़ेगा।’ श्री गोयनका ने कहा–‘यह पहला अन्तर्राष्ट्रीय लघुकथा सम्मेलन है। लघुकथा की चिन्ता यह देश और समाज है।

विमर्श (1)सत्र में ‘लघुकथा : विषयवस्तु और शिल्प की सिद्धि’ विषय पर श्री जयप्रकाश मानस ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया, मानस जी ने कहा–‘लघुकथा गद्य परिवार की सबसे छोटी विधा है, इसलिए लघु है। लघुता उसका शिल्पगत आचरण है–दूब की मानिंद,चन्द्रमा की मानिंद। संक्षिप्तता, व्यंजना इसकी शक्ति है। विषयों का संकट अच्छे लघुकथाकार को कभी नहीं होता।’
लघुकथा की संचेतना एवं अभिव्यक्ति को लेकर अधिकतर वक्ताओं में भ्रम की स्थिति देखी गई,जबकि लगभग दो पहले विभिन्न गोष्ठियों तथा सम्मेलनों में इसका निवारण हो चुका है।

 
 
 
डा. सतीशराज पुष्करणा ने सभी भ्रमों का निराकरण करते हुए कहा–‘रचना अपना आकार स्वयं तय करती है। कालदोष और कालत्व दोष दोनों अलग–अलग हैं। लघुकथा कालत्व दोष स्वीकार नहीं करती। लघुकथा में शीर्षक महत्त्वपूर्ण है। लेखकीय अनुशासन जरूरी है। भाषा का महत्त्व और नियंत्रण और अधिक जरूरी है। श्री नैमिशराय ने कहा–‘लघुकथा समाज को पढ़ने का सशक्त माध्यम है। इसमें कल्पना का महत्त्व अधिक नहीं है।
 
विमर्श (2) सत्र में ‘लघुकथा का वर्तमान’ विषय पर डॉ. अशोक भाटिया ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। श्री भाटिया ने संवेदना से संचालित रचनात्मक विवेक को प्राथमिकता दी। लघुकथा में कुछ अनकहा भी रह जाता है। यह अनकहा लघुकथा को सशक्त बनाता है। इस सत्र में श्याम सखा श्याम, फजल इमाम मलिक, मालती बसंत, अंजली शर्मा, कुमुद अधिकारी, के पी सक्सेना ‘दूसरे’, सुकेश साहनी आदि ने अपने विचार प्रकट किए। मालती बसन्त ने कहा–‘लघुकथा वर्तमान समय का सही दस्तावेज प्रस्तुत करे।’
 
 
श्री सुकेश साहनी ने कहा–‘वर्षों पहले का कच्चा माल सही अवसर मिलने पर रचना का स्वरूप धारण करता है। लघुकथा में गम्भीर चिन्तन भी होता है। लेखकीय दायित्व ही विधा को सशक्त बनाता है। लेखक की अनुपस्थिति रहती है। ‘मैं’से तात्पर्य लेखक से नहीं। उन्होंने लघुकथा में कल्पना और फैंटेसी के महत्त्व को रेखाकिंत किया।
अधिकतर वक्ता विषय से हटकर बोले जिसके लिए इस सत्र के संचालक रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने कई बार टोका। ‘हिमांशु’ ने रचनाकारों से क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठकर सोचने के लिए कहा। संकीर्ण सीमाओं में बंधकर वैश्वीकरण की बात नहीं की जा सकती।
लघुकथा गौरव और सृजन श्री सम्मान से अनेकानेक रचनाकारों को सम्मानित किया गया जिनमें प्रमुख हैं–सर्वश्री सतीश राज पुष्करणा, बलराम अग्रवाल, अशोक भाटिया, मालती बसंत, रामकुमार आत्रेय, रोहित कुमार हैप्पी, देवी नागरानी, डॉ.जयशंकर बाबू आदि।
भारती बन्धु के कबीर गायन ने श्रोताओं का प्रभावित किया। आनंदी सहाय शुक्ल –‘तट पर डाल दिया लंगर है।’ हस्ती मल ‘हस्ती’ की ग़जल–‘प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है। नए परिन्दों को उड़ने में वक्त तो लगता है।’ की पंक्तियाँ श्रोताओं के दिलों को छुए बिना कैसे रहती?
अन्तिम सत्र में लघुकथा पाठ किया गया जिसमें सर्वश्री सुकेश साहनी, श्याम सखा श्याम राम पटवा, आलोक भारती, फजल इमाम मलिक, राम कुमार आत्रेय, शल चन्द्रा, कुमुद अधिकारी, रोहित कुमार हैप्पी, सुमन पोखरेल आदि ने अपनी लघुकथाएँ पढ़ी। सत्र का संचालन सद्भावना दर्पण के सम्पादक श्री गिरीश पंकज ने किया।
17 फरवरी को ‘लघुकथा का भविष्य और भविष्य की लघुकथा’ पर गिरीश पंकज ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। पंकज जी ने कहा–‘लघुकथा बदलते हुए युग चरित्र के अनुरूप होनी चाहिए। साहित्य केवल समाज को बदलने का प्रयास भी करता है।
 
 
इस सत्र का संचालन डॉ.सतीश राज पुष्करणा ने किया। वक्ता विषय से हटकर बोलने का भरपूर प्रयास करते रहे। पुष्करणा जी ने लगाम लगाने का काफी प्रयास किया। सर्वश्री रामकुमार आत्रेय, बलराम अग्रवाल, डॉ. जयशंकर बाबू, नवल जायसवाल, डॉ.अशोक भाटिया डॉ. हरिवंश अनेजा, डॉ. देवी प्रसाद वर्मा ने अपने विचार प्रस्तुत किए। डा राम निवास मानव ने ‘लघुकथा :बहस के चौराहे पर’ तथा अपनी पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा कि शास्त्रीय पक्ष पर एक अर्सा पहले बहुत कुछ कहा जा चुका है ।श्री सुकेश साहनी ने कहा–‘लघुकथा के क्षेत्र में निराशाजनक स्थिति नहीं है। खलील जिब्रान की लघुकथाओं की लघुकथाओं का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि भविष्य की लघुकथा के लिए रचनाकार के लिए किसी तैयारी की जरूरत नहीं है।

मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह जी ने राष्ट्रीय अलंकरण से विभिन्न रचनाकर्मियों को सम्मानित किया इनमें प्रमुख रहे–सर्वश्री विश्वनाथ सचदेव, कमल किशोर गोयनका, सुकेश साहनी, निर्मल शुक्ल, मोहनदास नैमिशराय,

 
 
हस्ती मल हस्ती, भैरू लाल गर्ग (सम्पा.बालवाटिका), सुभाष चन्दर, राम निवास मानव, सुश्री पूर्णिमा वर्मन(हिन्दी गौरव सम्मान), रविशंकर श्रीवास्तव आदि।
 
 
इस अवसर पर मुख्यमंत्री डा रमन सिंह जी ने विभिन्न कृतियों का विमोचन भी किया गया। इस आयोजन को सफल बनाने में श्री जयप्रकाश मानस की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण रही है। श्री राम पटवा, श्री राजेन्द्र सोनी हर समय व्यस्त दिखाई दिए। श्री सत्य नारायण शर्मा जी पूरे कार्यक्रम में बने रहे एवं तरोताजा दिखे।
लघुकथा के क्षेत्र में यह सम्मेलन तभी सार्थक माना जाएगा ,जब लेखक वर्तमान समाज की गहनता से पड़ताल करें एवं अपने लेखकीय दायित्व का ईमानदारी से निर्वाह करें। क्षेत्रीयता से ऊपर उठना बहुत ज़रूरी है ।

 
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