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लघुकथाएँ - देश - नीरज जोशी
मीडियाई सम्वेदनाएँ

अखबार के कार्यालय में नवनियुक्त पत्रकार को फोन पर सूचना मिली कि यात्री बस उलट जाने से एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई तथा कई घायल हुए हैं। पत्रकार तत्काल घटनास्थल की ओर कूच कर गया। वहां वह देखता है खून से लथपथ बस चालाक, घायल यात्री,अस्त–व्यस्त सामान.....और देखता है कराहती, मौत के दरवाजे पर दस्तक देती उस महिला को जिसे अभी–अभी बचावकर्मियों ने बस के नीचे से निकाला है। साथ ही वह सुनता है घायल यात्रियों का करुण शोर, उनके परिजनों के चिल्लाने और बच्चों के बिलखने की आवाजें तथा पीड़ितों को ढाढ़स बँधाते लोगों के सांत्वना के स्वर...
पत्रकार इस मार्मिक घटना का ब्यौरा लेकर कार्यालय में दाखिल होता है। और सीधे प्रथम पेज के सम्पादक के पास पहुंचता है, ‘‘सर,इस बस दुर्घटना की खबर को पहले पन्ने पर स्थान दीजिए। क्योंकि जो बस पलटी है वह अवैध रूप से संचालित हो रही थी और ऊपर से बस चालक शराब भी पिए हुए था। इसमें जो एक निर्दोष मारा गया है वह अपने परिवार का एक मात्र सहारा था।
‘‘कितने मरे?’’ अपना चश्मा ऊपर चढ़ाते हुए सम्पादक ने पूछा।
‘‘एक मरा है और कई घायल हुए हैं सर’’। पत्रकार ने जवाब दिया।
खबर को लेने के लिए बढ़े हुए हाथों को पीछे करते हुए सम्पादक बोले, ‘‘इसे कहीं अन्दर के पृष्ठ पर ले लो।’’
‘‘अन्दर के पृष्ठ पर!’’ पत्रकार आहत होते हुए बोला।
‘‘हाँ भई! एक ही तो मरा है। चार–छह मरते तो फर्स्ट लीड बन जाती।’’ कहते हुए सम्पादक महोदय पुन: अपने कार्य में व्यस्त हो गए।

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