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सुकेश साहनी
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कामचोर

प्राचार्य ने उसे अपने कक्षा में बुलाया और लगभग डाँटते हुए कहा, आप से कितनी बार कहा है कि आप ‘डेली डायरी’बनाएँ और छृट्टी के समय जाने से पहले चेक कराएँ । यह जहाँ तुम्हारे रोज़ के काम का लिखित प्रमाण होगा वहीं छात्रों के प्रति तुम्हारे अटैचमेंट और कार्य परायणता एवं गुणवत्ता का नमूना भी। और भी ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं , जो डायरी द्वारा ही सम्भव हैं, यह छात्र हित में है तथा इसका कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। उसने बुझे मन में ‘यस सर’ कहा और फिर बाहर का रुख किया।
‘‘स्साला, क्या समझता है अपने आपको, खुद तो इस फिराक में रहता है कि मार्च में निकल जाए, किस किस से क्या –क्या एडजस्ट करना है कितना कमीशन बनना है, इसी में पूरा दिन निकाल देता है और हमसे कहता है , ‘‘डायरी बनाओ, लिखित प्रमाण है।’’कहता हुआ वह कामन–रूम की तरफ बढ़ गया। बैठकर सोचने लगा ये सभी लोग बिल्कुल नहीं पढ़ाते पर डायरी रखते है एक दम ‘टिपटॉप’ मैं जी जान से पढ़ाता हूं , मेरी पढ़ाई क्या ‘रिफ़्लेक्ट’ नहीं करेगी बच्चों द्वारा । फिर डायरी की क्या जरूरत है? मैं इतने परिश्रम से कई–कई उदाहरणों द्वारा अपना विषय गम्भीरता से प्रस्तुत करता हूँ शायद इसीलिए बच्चों में सर्वाधिक लोक प्रिय अध्यापक भी हूँ, पर यह डायरी के पीछे पड़ा रहता है,
वार्षिक स्थातांतरण ,आदेश विद्यालय में आ गया था। सारे लोलुप, चाटुकार,, अध्यापक प्रसन्न थे उनका ‘ट्रांसफर’ नहीं हुआ था। विद्यालय से केवल एक अध्यापक का ही स्थानांतरण प्रशासनिक आधार पर (लद्दाख) किया गया था और वह अध्यापक था, तिवारी। उसे बच्चों को पढ़ाने में रुचि न लेने के लिए दण्डित किया गया था।

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