सुमि की ससुराल से कुरियर से आई चिट्ठी ने सबको सकते में ला दिया। अभी परसों ही तो सरल यहा से गया है। शायद मम्मी या पापा में से कोई बीमार होगा, सुमि के चेहरे की लकीरें ऐसा कुछ कहने को थी।
गर्मी की छुट्टियाँ। सभी तो होते है घर पर। दोनों भैया, भाभी, दीदी, अनु और उनके बच्चे सोनल और मिक्की। गर्मियों में ही एक साथ सब मिल पाते है जब चारों दिशाओं से सब एक जगह आकर इकट्ठे होते हैं। खूब हँसी -ठट्ठा,अपने–अपने घरों की बातें और भविष्य की योजनाएँ। गर्मियों के बड़े-बड़े दिन भी भी इन सब में छोटे पड़ जाते। दस वर्षीया सोनल छोटे मिक्की के साथ खूब खेलती।
आज सुमि ने अपने पापा की खूब प्रशंसा की थी। ‘‘पापा मेरा बहुत ख्याल रखते हैं। रिटायर्ड हैं, ।ज़्यादातर घर पर ही रहते हैं। मेरे काम में हाथ भी बँटाते है। यहां तक कि किचन में आकर सब्जी काटना, मिक्सर में चटनी पीसना वगैरह,वगैरह...। कभी कभी तो मेरे देर से सोकर उठने पर वो बेड टी भी....।’’
‘‘दीदी इतनी ज्यादा बड़ाई मत करो कि कही सच भी बनावटी लगने लगे’’ सुमि को बीच में ही रोकते हुए छोटी बहन अनु बोल रही थी।
मिक्की, सोनल से हमेशा की तरह कैरम की बाजी जीतने पर प्रसन्न था। सोनल पर हार जाने का कोई भाव नहीं था। वह भी उसकी प्रसन्नता में शामिल थी।
भैया ने चिट्ठी पढ़ी, ‘‘आदरणीय.......’’ पढ़ते–पढ़ते अचानक भैया की आवाज गुम हो गई।
‘‘भैया जरा जोर से पढ़ो।’’ अनु थोड़ी असहज उत्सुकता के साथ बोल पड़ी। भैया पत्र पढ़ने लगे।
‘‘.............इस पत्र के साथ सरल को भेट में दिए गए रुपए भेज रहा हूं। कपड़े सामान आदि किसी के आने पर भिजवा दूँगा। हम लोग बहुत आदर्शवादी विचारधारा के लोग है ।लेन- देन में विश्वास नहीं करते। आगे से हमें किसी प्रकार की भेंट आदि न दी जाए। आशा है आप सब हमारी भावनाओं को समझेंगे व इसे अन्यथा नहीं लेगें। ‘‘आपका।’’
भैया का चेहरा सुर्ख हो चला। तनाव स्पष्ट झलकने लगा था। ‘‘आदर्शवादी।’’ शादी के पहले तो नकद के लिए ही दस बार.......। .......अब आदर्श ! कितना खोखलापन है इनके आदर्शो में। सब कुछ खा चुकने के बाद हाजी बन गए.....।’’ तमाम संयम के बाद भी अन्दर के शब्द क्रोध के कारण होठों पर उतर आए।
‘‘सुमि, तुमने पहले कभी बताया नहीं’’ बाबू जी तब तक कमरे में आ चुके थे ‘‘कितना साहस है तुममें।’’
सुमि ने दीदी के आंचल में अपना चेहरा छिपा लिया।
‘‘सोनल,मिक्की के साथ मिलकर खेलो। मिक्की को रुलाओ मत’’ मिक्की के खेलते–खेलते अचानक रो पड़ने पर भाभी ने सोनल को डाँट लगाई।
‘‘मम्मी, मैंने कुछ नहीं किया। मिक्की इस बार जीत नहीं पाया है, न। हर बार तो इसे मैं ही जिताती थी।’’
मिक्की की अपेक्षा इस बार पूरी नहीं हो सकी थी। हर बार जीतते रहने के भ्रम में वह यह नहीं जान सका था कि उसकी हर जीत में सोनल का प्रयास है, उसे प्रसन्न रखने का। मिक्की की अपेक्षाएँ सोनल से भी बड़ी हो चली थी और रोना -अपेक्षा पूरी न होने की प्रतिक्रिया।
भाभी सोनल को ही समझा रही थी।