‘‘तुम्हें चार हजार रुपये चाहिए बेटी की शादी के लिए न, मिल जाएँगे।’’
‘‘वह कैसे?’’
‘‘तुम्हारी पत्नी के नाम शिक्षित बेरोजगारी का दस हजार का कर्ज ले लेंगे।’’
‘‘लेकिन उसे कर्ज देगा कौन ?’’
‘‘बैंक देगी’’
‘‘वह कैसे ?’’
‘‘बंैक मैनेजर देगा–तीन हजार लेकर’’
‘‘लेकिन उसके पास तीन हजार देने के लिए आयेंगे कहाँ से ?’’
‘‘ओफ्फोह ! देने के लिए किसने कहा है ? उसी दस हजार से काट लेंगे’’
‘‘लेकिन मेरी पत्नी गारंटी कहाँ से देगी?’’
‘‘ओफ्फोह ! गारंटी के लिए पहचान की क्या जरुरत ? मैं दूँगा गारंटी, एक हजार रुपये लेकर।’’
‘‘लेकिन तुम्हें देने के लिए वह एक हजार लायेगी कहाँ से ?’’
‘‘अरे भाई, उसी दस हजार से काट लेंगे।’’
‘‘लेकिन मेरी पत्नी तो कोई रोजगार या हुनर जानती ही नहीं’’
‘‘ओफ्फोह ! इसकी क्या जरूरत है, पापड़ बड़ी अचार के व्यापारी से फर्जी बिल ले लेंगे दो हजार देकर।’’
‘‘लेकिन वह यह दो हजार लायेगी कहाँ से?’’
‘‘ओफ्फोह ! देने के लिए कहा किसने? उसी दस हजार से काट लेंगे’
‘‘लेकिन वह दस हजार का कर्ज बैंक का चुकाएगी किस तरह ?’’
‘‘ओफ्फोह! तुमसे कर्ज चुकाने को कहा ही किसने?’’