‘‘इंस्पेक्टर, फौरन घायल का बयान दर्ज कर लीजिए।’’
‘‘लेकिन यह तो मर चुका है डॉक्टर!’’
‘‘यह बात सिर्फ़ हम दोनों ही जानते हैं।’’
‘‘माजरा क्या है?’’ इंस्पेक्टर ने कुर्सी पर बैठते हुए पूछा।
‘‘यह लाश राय साहब की फैक्ट्री के मजदूर लीडर रामदीन की है। नेतागिरी कुछ ज्यादा ही सिर चढ़ गयी थी इसके। लगा मजदूरों को राय साहब के खिलाफ भड़काने। राय साहब को गुस्सा आ गया और उनकी बंदूक चल गयी। आपको बयान इस तरह बनाना है कि राय साहब पर कोई आँच न आने पाये।’’
‘‘लेकिन मुर्दे का बयान....’’
‘‘सिर्फ़ नाम से ही नहीं, काम से भी विक्रमादित्य बनिए इंस्पेक्टर।’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘विक्रमादित्य सवाल नहीं करता था। लाश जो कुछ कहती, चुपचाप सुनता था।’’
यह कहते हुए डॉक्टर ने राय साहब की ओर से भेंट में भेजी रुपयों की मोटी गड्डी इंस्पेक्टर के हाथ में थमा दी। नोटों को छूते ही इंस्पेक्टर को लगा कि उसके सर पर ताज है और वह सचमुच राजा विक्रमादित्य है, जिसे हमेशा की तरह बैताल का बयान दर्ज करना है, बिना कोई सवाल किए।
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