‘‘चिड़िया!’’ वह चौंककर बोला। उसका चेहरा क्रूर लगने लगा। कुछ क्षण पहले वह बहुत ही विनम्र लग रहा था।
‘‘मैं चिड़िया नहीं बना सकता।’’ अपनी क्रूरता को कम करने की कोशिश करते हुए उसने कहा।
‘‘मेरा मतलब यह नहीं कि तुम हू–ब–हू चिड़िया बनाओ। चिड़िया जैसा कुछ भी बना सकते हो। आखिर बच्चे भी चिड़िया बना लेते हैं। तुम क्यों नही बना सकते।’’ मैंने उसे प्रेरित करने का प्रयास किया।
‘‘मैं चिड़िया नहीं बनाऊँगा,’’ परेशानी और क्रोध में उसने अपना निर्णय सुनाया। वह अपने कोट के बटन खोलने लगा। अंदर की एक जेब में पिस्तौल झाँक रही थी। दूसरी जेब में छोटे आकार की एक बोतल थी।
‘‘वह डिब्बे जैसा क्या है?’’ मैने उसके कोट के बाहरी जेब की ओर इशारा करते हुए पूछा।
‘‘यह ब्लू फिल्म है।’’ उसने डिब्बे को बाहर से छूते हुए कहा। उसका आत्म–विश्वास फिर लौट आया था।
‘‘तुम गोली चलाने का साहस रखते हो?’’ मैंने पूछा। वह समझ गया कि मैंने उसकी पिस्तौल को भाँप लिया है।
‘‘देखो, ये सब बातें तुम नहीं समझ सकते’’ यह उसने ऐसे कहा जैसे किसी बच्चे पर तरस खा रहा हो। कुछ ही क्षणों में समीकरण बदल गया था। वह अपनी संपन्नता की ओर इशारा करना चाह रहा था। यह उसका ढाल ही नहीं हथियार भी था।
‘‘अच्छा तो बताओ तुम चिड़िया क्यों नहीं बना सकते?’’ मेरे यह कहते ही उसका चेहरा तन गया।
‘‘नहीं बनाता जाओ!...’’ वह लगभग चीखने लगा। कोई सही कारण नहीं बता पाने पर उसे चुप हो जाना पड़ा जबकि वह और चीखना चाहता था ।धमकाने की असफल कोशिश के बाद वह दूसरा रास्ता ढूँढ़ना चाहता था। लेकिन रास्ते में चिडि़या दाना चुग रही थी।
‘‘देखो चिड़िया तो तुम्हें बनानी ही होगी। तुम बना सकते हो। सचमुच!’’ मैंने उसे पुचकारते हुए कहा।
‘‘देखो ऐसा है’’ उसने अपना स्वर धीमा कर दिया। जैसे कोई रहस्य खोल रहा हो।
‘‘मुझे डर है’’ यह कहते हुए उसकी आँखों में प्रस्तुत भेद को छिपाये रखने का आग्रह करने लगा।
‘‘कि मैं चिड़िया बनाने की कोशिश करूँगा तो कोई खतरनाक चीज बन जायेगी।’’ भयभीत आवाज में वह यह सब कह गया।
‘‘कुछ नहीं होगा’’ मैंने कहा और एक दूसरा कागज दिया जिसमें चिड़िया बनी हुई थी। ‘‘यह चिड़िया बचपन में तुमने ही बनायी है।’’
वह आश्चर्य से उस कागज को देखे जा रहा था। वह सिर पकड़कर जमीन पर बैठ गया और बोला ‘‘हे भगवान!’’
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