‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’
‘‘फिर नौकरी छोड़ ही क्यों नहीं देता ?’’
‘‘अरे हमें दे दे। बड़ा दानी बनता है।’’
इसकी जांच सी.बी.आई. से करायी जानी चाहिए कि इसके पास इतना पैसा कहाँ से आया, कैसे कमाया, वरना सरकारी कर्मचारी और तनख्वाह छोड़े।
फाइल खुल गई और निर्णय के लिए सरकने लगी। संविधान विशेषज्ञों की राय, कानूनी राय, वित्तीय धारा, उपधारा, विशेष कमेटी की राय। सभी हरकत में आ गए।
लेकिन निर्णय आने से पहले ही छेदीलाल सेवानिवृत्त हो गये। भनक पाते ही फाइल भी जहाँ थी वहीं खड़ी हो गयी।
यह उन दिनों की बात है जब भारत सरकार वित्तीय संकट से जूझ रही थी और प्रबंधन में हर कोने पर ‘तुरंत निर्णय’ का संगीत गूँज रहा था।
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