द्वार पर सायकिल आकर रुकी। वह दौड़कर अपने पापा के पास पहुँच गया। अपने कंधे से झोला उतार कर उन्होंने बेटे को थमाते हुए बड़े प्यार से कहा, ‘‘तेरे लिए संतरे लाया हूँ।’’
वे सा।इकिल एक किनारे खड़ी करके थके हुए, कमरे में आकर बिस्तर पर पसर गये। उनका बेटा उनकी बगल में बैठता हुआ बोला, ‘‘आप रोज थक जाते हैं पापा ? आप तो शार्टकट रास्ते से सीधे गुरुद्वारे के सामने वाली गली से होते हुए, मस्जिद के पीछे की खाली सड़क पर आ जाया करें। चौराहा पार करते ही हमारा घर...।’’
‘‘इतना लम्बा भीड़ भरा रास्ता क्यों तय करते हैं ?’’ दूसरे बेटे ने कहा।
‘‘बेटे...।’’ उन्होने साँस भर कर कहा, ‘‘इधर से इसलिए नहीं आता कि आज–कल मन्दिर, मस्जिद या गुरुद्वारे के पास बारूद बिछी होती हैं, न जाने कब फट पड़ें।’’
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