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लघुकथाएँ - देश - शरद जोशी
मैं वही भगीरथ हूँ

मेरे मोहल्ले के एक ठेकेदार महोदय अपनी माता को गंगा स्नान कराने हरिद्वार ले गये। गंगा के सामने एक धर्मशाला में ठहरे। शाम सोचा, किनारे तक टहल आएँ। वे आये और गंगा किनारे खड़े हो गए।
तभी उन्होंने देखा कि एक दिव्य पुरुष वहीं खड़ा एकटक गंगा को निहार रहा है। ठेकेदार महोदय उस दिव्य व्यक्तित्व से बड़े प्रभावित हुए। पास गये और पूछने लगे, ‘आपका शुभ नाम?’’
‘‘मेरा नाम भगीरथ है।’’ उस दिव्य पुरुष ने कहा।
‘‘मेरे स्टाफ में ही चार भट भगीरथ है। जरा अपना विस्तार के परिचय दीजिए।’’
‘‘मैं वही भगीरथ हूँ, जो वर्षो पूर्व इस गंगा को यहां लाया था। उसे लाने के बाद ही मेरे पुरखे तर सके।
‘‘वाहवा, किनता बड़ा प्रोजेक्ट रहा होगा। अगर ऐसा प्रोजेक्ट मिल जाये तो पुरखे क्या, पीढि़याँ तर जाएँ।’’

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