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लघुकथाएँ - देश - श्रीनाथ
भूमंडलीकरण

अपनी झुग्गी के आगे ब्रश करने के साथ मन में बज रही ‘दिल तो पागल है...’ की धुन पर झूमने के बीच माद्दुरी ने अपनी माई की झलक पाई, जो कॉलोनी की वी.आई.पी. लेन से निकलकर अपनी महरी साथिन के साथ आती दिख रही थी। साथ लपकते झबरे उर्फ़ मॉन्टी ने सन्देह मिटाकर माद्दुरी को जमीनी सच से जोड़ा और उसकी सक्रियता को गति दी।
माई ने पास आकर साथिन को ‘बाय’ कहा और मॉन्टी को चेन सहित उसके ठीहे पर बाँध दिया। जलावन का ढेर लेकर भीतर जाते पल उसकी नजर माद्दुरी पर अटकी, जो दीवार पर शोभित लक्स–तारिकावलि और दर्पण की सहायता से दिवस का केश–विन्यास निश्चित करती थिरक रही थी।
‘‘हे बिटिया... अब मस्ती करे का बखत नाहीं है,’’ माई ने दुलार कर सचेत किया– ‘‘तनी जल्दी कर रानी, नाहीं पिलास्टिक गोदाम वाले कउनो दुसरी का काम दैदिहें।’’
‘‘डोन्ट वरी मॉम, आई यम रेडी,’’ माद्दुरी ने रसीली खिलखिल की घंंटियाँ गुँजाकर जीवन–लय को साधे रखा और चाय के पैकेट से संग मुफ्त हाथ लगे जापानी हर्बल शैम्पू का पाउच संभाल हैण्डपाइप की राह पकड़ी।
चाय बनाते समय माई ने डिब्बे की तली छूते चीनी–स्तर को देखा और अधीर पुकार लगाई ए ‘‘ए बिरजू!... का आजहु रासन–डिपू जाए का बिचार नाहीं है? रासन–गल्ला सब फिनिस है। फीकी चाय मिले तो बाप–बेटा ब‍र्रै हौ ना, भला?’’
माई के संवाद में घुले संकेत ने असर किया। भीतर एक कोने में हॉलीवुड– भीम सिल्वेस्टर स्टैलोन के पोस्टर के आगे कबीलाई संगीत की लय–ताल पर ‘एरोबिक्स’ कर रहे भावी मॉडेल बृजलाल उर्फ़ बिरजू का प्रतिरोधी आक्रोश गूँजा– ‘‘चाय बने चाहे चूल्हे मा जाए, हमका फोटू सेसन कराए का है।’’
माई की रोब और खीज भरी तीखी बक–झक को टेप की ऊँची आवाज में दबाकर वह एकलव्य अपनी साधना में जुट गया।
दूसरे कोने में ड्रम सेट पर रियाज कर रहे गृहपति के हाथ रुक गए। पिछले जगराते की थकान और अगले की तैयारी के तनाव से जूझते कलाकार को यह स्वर–संग्राम अराजक हस्तक्षेप के लिए उकसा रहा था, पर संभावित परिणाम का ध्यान रख उसने संकोचपूर्ण विनय की– ‘‘राजा भइया, जरा सांती का सहजोग दीजिए और यह बाजा भी। हमको आज रात जबर्दस्त आइटम पेस करना है,’’ यह कहने के साथ उसने टेपरिकार्डर पर कब्जा किया, शहर में धूम मचा रही संगीत मंडली का टेप चलाया और विदेशी ताल–खजाने से अपनी झोली भरने लगा।

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