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सबसे बड़ा अपराधी

बेताल ने विक्रम से कहा, हे राजन एक समय रुड़की नगर के शांतिनगर कॉलोनी में एक बुद्धिजीवी रहा करता था। गुनगुनी ठंड की शुरूआत थी। और, जैसा कि बुद्धिजीवियों के लिए आवश्यक होता है, वह लॉन में रंगबिरंगी गुलदावदी के बीच, चाय की प्याली के साथ अखबार पढ़ रहा था। सहसा उसकी नजर एक खबर पर पड़ी। एक लड़की किसी लड़के से प्यार करती थी, और उसके साथ भाग गई। फिर पुलिस लड़की को पकड़ कर उसके माँ–बाप के पास छोड़ गई। लड़की के ताऊ और बिरादरी के पंचों ने निर्णय लिया कि लड़की की खुमार उतारनी पड़ेगी। और रात भर एक कमरें में पाँच मुस्टंडे उसकी खुमार उतारते रहे। सुबह लड़की को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।
‘‘खबर इतनी ही नहीं थी। उसमें पूरा विवरण था–मुस्टंडे चुनने से लेकर खुमार उतारने तक का। बुद्धिजीवी ने आंखें बंद कर लीं। उसे लगा कि चाय थोड़ी मीठी बन गई है। वाकये को पूरी तरह से विजुएलाइज करने के लिए उसे कोई उन्नीस वर्ष की लड़की चाहिए जिसके साथ वो पूरी घटनाओं को देख सकें।
‘‘उसने आँखें खोलीं। उसकी अपनी बिटिया लॉन में खड़ी खिलते हुए गुलाब को देख रही थी। पंरतु अपनी बिटिया को पाँच मुस्टंडो के साथ–उसे दृश्य अच्छा नहीं लगा। उसने फिर चारों ओर निगाह दौड़ाई। पड़ोसी की बिटिया उसे ठीक–सी लगी। उसने आँखे बंद कर ली अपने मॉडल पर पूरे सिचुएशन को विजुएलाइज करने लगा।
इतना कह कर बेताल ने कथा बंद कर दी और विक्रम से कहा, ‘‘हे राजन् वो लड़की अस्पताल में पड़ी हुई मौत से जूझ रही है तथा उसका प्रेमी सेवा कर रहा है। पंरतु इस सबका जिम्मेवार कौन है? और सबसे बड़ी बात यह कि सबसे बड़ा दोषी कौन है? वो ताऊ, गाँव के सरपंच, मुस्टंडे या फिर वो प्रेमी? किसका अपराध सबसे बड़ा है?’’
विक्रम ने उत्तर दिया, ‘‘ हे बेताल, इसमें से कोई भी सबसे बड़ा अपराधी नहीं है, ताऊ, गाँव के सरपंच या मुस्टंडे या प्रेमी इनमें से सबके साथ ऐसी कोई–न–कोई प्रतिबद्धता हो सकती है, जिससे वह स्वयं को सही समझते हों, सबसे बड़ा अपराधी है वो बुद्धिजीवी जो ऐसी खौफनाक खबर पढ़कर भी कुछ नहीं बोलता और इसे सि‍र्फ़ एक चटखारेदार खबर मानकर बैठा चाय पीता रहता है।’’


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