गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
बेटियाँ

बच्चों को स्कूल ले जाने व छोड़ने बाले के चेहरे पर कई दिनों से मै चिन्ता की रेखाएँ साफ पढ़ सकता था। एक दिन रहा न गया तो दोपहर को बच्चे छोड कर जाते हुए मैने उसे रोक ही लिया।
-आओ बुद्धराम पानी पी लो बडी गर्मी है।
वह रुक गया मैने उसे अपने कमरे में बिठा कर पानी पिलाया। पानी पी कर वह माथे और चेहरे का पसीना पोंछने लगा।
-क्या बात है भई लगता है कई रोज से तुम परेशान हो।
-नही बाबू जी ऐसी कोई बात नही है। उसने कह तो दिया मगर वह अपनी पीड़ा छुपा न सका।
-नही बाबू जी ऐसी कोई बात नही है दरअसल दस दिन बाद बिटिया की शादी है और थोडी सी पैसे की कमी रह गई है, अपने भाइयों बिरादरी वालों यहाँ तक कि जिन के घर बच्चे छोड़ता हूँ सभी से पूछ चुका हूँ- वह सकुचाते हुए बोला।
-लेकिन मुझ से तो नही पूछा।
-वो बाबू जी क्या है कि मेम साहब से पूछा था, उन्होंने मना कर दिया था। कहते कहते लगा कि वह शायद रो ही देगा।
-कितनी कमी रह गई।
-यही पाँच हजार रुपये।
-लौटाओगे कैसे, मैने पूछा।
-हर महीने पाँच-पाँच सौ देकर, आप चाहें तो ब्याज भी .......कहते हुए उस की आँखों में चमक -सी आ गई थी।
-ये लो पाँच हजार रुपये, जब चाहो लौटा देना। उस के जाते ही और घर के भीतर घुसते ही पत्नी की आवाज सुनाई दीं।
-आप ने पाँच हजार रुपये उठा कर उसे दे दिए, ना पता मालूम है ना ठिकाना और ये रुपये तो वैसे भी मैने अगले सप्ताह आ रही विटिया के लिए रखे थे। उसे कपडे, सामान वगैरा देना था।
मैने भी तो वह पैसे बिटिया को ही दिए हैं। बेटी चाहे गरीब की हो या अमीर की, बेटी तो बेटी होती है।
अब पत्नी खामोश थी।


°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above