वह सुन्दरी अनेकों कष्ट सहती, नदी, नाले ,जंगल पार करती भूख–प्यास से व्याकुल होती उस साधु की कुटिया तक पहुँची। व्याकुल हो उनके चरणों में गिर पड़ी–‘मेरा उद्वार करो महात्मन! आपका नाम सुन मैं बहुत दूर से चलते हुए आई हूँ। आप तो बहुत पहुँचे हुए महात्मा हैं।’
साधु ने आँखें खोलीं। सुन्दरी का रूप योगी के नेत्रों में मादक रंग भरने लगा। वे पलकें झुकाना भूल गए। कुछ देर बाद अस्फुट शब्दों में बोले–महात्मा था, ‘हूँ’ नहीं।