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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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एकलव्य
‘तुम होम–वर्क कैसे करते हो?’अध्यापक ने धनी घर के छात्र विनय से पूछा।
‘सर! मुझे मैडम ऎनी पढ़ाने आती हैं। मुझे होम वर्क करने में कभी प्रोब्लम नहीं आती सर!’
‘और तुम कैसे करते हो प्रीत होम वर्क?’ अध्यापक ने उस अधिकारी के बेटे से जानना चाहा।
‘सर! मुझे होमवर्क में मेरी मम्मी मेरी हैल्प करती हैं। इट बीकम्स ईजी टू मी। मुझे कभी परेशानी महसूस नहीं होती सर!’ प्रीत के स्वर में अधिकारी पुत्र की आधिकारिक भावना का पुष्ट मिश्रण था।
‘शाबाश! अच्छा महेन्द्र तुम बताओ?’
‘जी मैं अपना होम वर्क स्वयं करता हूँ। बाबा जब सो जाते हैं और माँ जब चाँद की रोशनी में अपना चरखा लेकर बैठती है तब। कोई समस्या आती है तो आपके नोट्स पढ़ लेता हूँ सर।’
महेन्द्र का उत्तर सुनकर क्लास में अग्रिम पंक्ति में बैठे सभी बच्चे खिलखिलाकर हँस पड़े।
 
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