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अनुत्तरित
राधे की अकस्मात् मौत सबको हिला गई। राधे की बहू तो जड़ हो गई थी। जिसके पास नरक जैसी जिन्दगी स्वर्ग बन गई हो, उसका बिछोह तोड़ ही तो डालेगा।...और फिर जवान होती तीन बेटियाँ, इतनी जिम्मेदारी अचानक आन पड़ना क्या छोटी बात है !
अभी तो बूढ़े माँ–बाप बैठे हैं, आँखों के सामने जवान बेटा चला जाए तो कैसा लगे.....?
‘ये वक्त तो हमारे जाने का था। तू क्यों चला।’
बूढ़ी माँ छाती पीट रही थी।
‘पता नहीं, भगवान ने किस जन्म का बदला लिया है हमसे।’ बूढ़ा बाप आँसू बहा रहा था।
‘हर आदमी के साथ नेकी की उसने। कोई गरीब हाथ फैलाता तो झोली भर देता।’ गाँव वाले हामी भर रहे थे।
‘गरीबों को कुछ दान–पुन्न करवा देती बेटी।’ तेरहवीं पर बूढ़े माँ–बाप ने कहा।
‘क्यों?’ बहू ने तपाक से प्रश्न रख दिया।
‘दान–पुण्य में उसका विश्वास था बेटी!’
‘जब विश्वास वाला ही चला गया तो फिर..... .विश्वास किस बात का? अभी तीन–तीन का जुगाड़ करना , मुझे अकेली को।’
‘कैसी बात करती है बहू। हमारा बेटा था वह।’
‘मेरे भी तो पति थे...।’
 
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