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लघुकथाएँ - देश - हरनाम शर्मा
मगर फिर वही
उनके युवा लड़के का देहावसान हुआ तो उन्हें गहरा आघात लगा।–ये अनाप–शनाप कमाई क्यों? आखिर किसके लिए?’
पर कुछ ही दिनों के बाद फिर उनका झूठे बिलों द्वारा धन प्राप्त करने और पार्टियों से मिलकर सरकारी खरीद में से कमीशन प्राप्त करने का धन्धा चल पड़ा।
नए पी.ए. की फाइल थमाकर उन्होंने पार्टियों से शाम को पैसे समेट लाने का अप्रत्यक्ष सा आदेश दिया तो युवक पी.ए. ने माजरा समझ तुरन्त जवाब दिया....साहब ! मैं बाल–बच्चेदार आदमी हूँ। वैसे भी यह बच्चों के डैस्क, अलमारी आदि खरीदने का मामला है। मेरे पास वेतन में से ही बहुत कुछ बचता है। वही समाप्त नहीं होता। इस पैसे से क्या होगा....आप ही......।’
साहब की आँखों का क्षेत्रफल दुगुना होकर चेहरे पर फैल गया। लगा कुछ दिन पूर्व मृत लड़का जीवित हो उठा है। उसने ही उन्हें यह थप्पड़ मारा है। उनका हाथ एकाएक गालों पर चला या। थप्पड़ झेलने की तलख़ी वे रह रहकर महसूस करते रहे।
 
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