देवकी ने दीए की मंद–मंद लौ के पास खाना बनाया और पटरे पर बैठकर अपने पति की प्रतीक्षा करने लगी....। उसका पति आया, तो उसने प्यार से थाली परोस कर उसके आगे रख दी। वह खाना खाने लगा तो देवकी हाथ के पंखे से हवा करने लगी। हवा के झोंके पति के बदन को शीतलता प्रदान कर रहे थे।
सामने कोठी के ऊँचे चौबारे से देवकी के घर का दृश्य पूनम देख रही थी। वह दम्पती–प्रेम का यह नज़ारा काफी देर तक देखती रही। इसके बाद वह भीतर आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने जा बैठी। उसने अपने अति सुन्दर गहनों और साड़ी से सजी हुईं देह को देखा.....अपने सिर के सिंदूर को देखा......घर में बिछे सुन्दर गलीचों को देखा... घर में जगमग करती फानूस को देखा... दीवार पर टँगे विदेशी क्लॉक को देखा....। उसे दूधिया रोशनी में क्लॉक की सुइयाँ नज़र नहीं आ रही थीं। उसे घर में सब कुछ धुँधला–धुँधला लग रहा था जबकि सामने देवकी के छोटे–से घर की मंद–मंद लौ में वह सब कुछ देख सकती थी। उसे देवकी के घर के मुकाबले अपना महल–सा घर बड़ा छोटा लगने लगा।
वह उठी और घर की सारी बत्तियाँ बुझा डालीं।