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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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कर्त्तव्य
डी टी सी बस से उतरा ही था कि लड़खड़ा कर गिर गया। आनन–फानन एक कार उसकी टाँगों पर से गुजर गई !दर्द का अतिरेक एक चीख के रूप में उभरा। महानगर की सभ्यता का एक अंश ठिठक कर रुक गया था। कनॉट प्लेस की ऊँची–ऊँची इमारतें एक पल के लिए भी घायल की दशा देखने केक लिए नहीं झुकी थीं।
लोग बड़ी सुविधा में खड़े थे, फर्ज सामने घायल पड़ा था। लेकिन मन काम, समय की कमी तथा पुलिस के भयावह साक्षात्कार में उलझा हुआ था। चूँकि उन सबकी सोच अनिश्चितता की स्थिति में थी, इसलिए वे वार्तालाप करती भीड़ को चीरता हुआ रेंगकर सड़क के बीचोंबीच जा पहुँचा और रुमाल हिला–हिला कर टैक्सियाँ रोकने का इशारा करने लगा।
एक टू सीटर रुका। उसके ड्राइवर ने उसे अन्दर घुसने में मदद की और मीटर डाऊन करके पूछा, ‘‘आप इतने घायल हैं फिर भी इतने जोखिम का काम कर गए?’’
‘‘हाँ, हर नागरिक हिकारत की नजर डाले वह बेहोश हो गया।
 
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