स्कूल के बच्चों का एक दल दिल्ली भ्रमण पर आया था। साथ में अध्यापक महोदय भी थे। दल एक के बाद एक ऐतिहासिक इमारतों और स्थलों की खाक छानता घूम रहा था। मास्टर जी उसका इतिहास भी बता रहे थे और बच्चों के जिज्ञासा भरे प्रश्नों के उत्तर भी देते जा रहे थे। ‘‘बच्चो,यह है कुतुबमीनार, इसे गुलामवंश के बादशाह कुतुबद्दीन ऐबक ने बनवाया था। कई सौ वर्ष पुरानी है यह। समय के साथ साथ इसमें काफी बदलाव आ चुका है। इसकी वह ऊँचाई अब नहीं रही जो कभी पहले थी।’’
‘‘यह है जामा मस्जिद। सैकड़ों वर्ष पहले मुगल बादशाह शाहजहाँ ने इसे बनवाया था। हालाँकि समय के हाथों इसकी वह चमक दमक फीकी पड़ी है। मगर अभी भी यह कला का सुन्दर नमूना कही जाती है.......।’’
‘‘यह है लाल किला। समय की मार इस पर भी पड़ी है। मगर अभी भी इसे मुगलों की आन ,बान और शान का प्रतीक समझा जाता है।
‘‘और बच्चोंयह है गाँधी संग्रहालय। यहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के जीवन से जुड़ी अनेक वस्तुएँ रखी हुई हैं। जैसे यह है गाँधी जी के पद चिह्न।’’
चमचमाते पदचिह्नों को देखकर एक बच्चे ने पूछा, ‘‘मास्टर जी पदचिह्न क्या नए है।’’
‘‘नहीं बेटा, यह भी बरसों पुराने है।’’
‘‘पुराने हैं..लेकिन ये तो अब भी चमक रहे हैं । क्या इन पर समय का कोई असर नहीं हुआ?’’
‘‘कैसे होता बेटा.....‘‘मास्टर जी ने ठण्डी साँस भरकर कहा..‘‘हम भारतवासियों ने कभी इन पर चलना गवारा ही नहीं किया।’’