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लघुकथाएँ - देश - इंदु गुप्ता
व्यापारी
मैं पोस्ट ऑफिस से स्पीड पोस्ट करवाकर बाहर निकली तो एक सज्जन, जो कुछ समय पहले टिकटें खरीद रहे थे, स्टैंड से अपनी साइकिल हटा रहे थे। उनकी साइकिल के कैरियर पर दुबले–पतले श्यामल तने वाली तुलसी के दो कोमल छोटे–छोटे बिरवे दिखाई दिए, जिनकी जड़ें पॉलीथिन की नीली, गुलाबी थैली में लपेटी गई थीं। कैरियर के दबाव तथा असहनीय धूप के प्रकोप से नाजुक, हरी पत्तियाँ मुरझाकर झुक रही थीं। कैरियर के कठोर पाश में उनका सुकोमल तना व शाखाएँ मुड़कर कमान बन गई थीं। जीवों में परमात्मा का अंश आत्मारूप में विद्यमान है, जीवन एवं प्राणवायु के इस तथ्य में मेरी विशेष आस्था है तथा प्रकृति–प्रेमी भी हूँ, इसलिए उन बिरवों को हनन के लिए ले जाया जा रहा है और वे बंधे मुख के कारण रंभा पाने में असमर्थ, केवल निरीह–सी अपनी पनियाली गहरी आँखों से जीवन की भीख मांग रही हों।
मैंने भावातिरेक में उन सज्जन से साल किया, ‘‘सर! आप घर जा रहे हैं या कहीं और?’’
‘‘क्यों?’’ प्रत्युत्तर में आशातीत प्रश्न उनकी जबान पर उभरा।
‘‘मैं चाह रही थी कि आप तुरंत घर जाकर पहले तुलती के इन बिरवों का रोपण कर दें, क्योंकि अगर आप इन्हें लिए–लिए कहीं और जाएंगे तो ये बेमौत मारी जाएँगी।’’
वह मुस्कराकर बोले, ‘‘इसकी आप चिंता न करें। मैंने अपने घर में बहुत–सी तुलसी उगाई हुई है तथा बीस रुपए प्रति पौधा बेचता हूँ। इन पौधों को तो मैं आर्डर पर किसी के घर देने जा रहा हूँ। मर जाएँगी तो लोग बीस रुपए में मुझसे और मँगवा लेंगे। यह मेरा धंधा है! आपको चाहिए तो अपना पता दे दो, मैं आपके घर भी पहुँच दूँगा।’’
तब मैंने उन्हें बताया, ‘‘मैं गाँव के सरकारी विद्यालय में प्राचार्या हूँ। विद्यालय में मैंने अपने पर्यावरण के लिए समर्पित स्टॉफ और विद्यार्थियों के सहयोग से ‘तुलसी कुंज’ बना रखा है, जहाँ से गाँव के बच्चे आवश्यकतानुसार अपने घर में रोपित करने के लिए तुलसी के पुनीत बिरवे नि:शुल्क ले जाते हैं। विज्ञान की विद्यार्थी होने के नाते मैं जानती हूँ कि औषधीय गुण–युक्त तुलसी का पौधा ओजोन छोड़ता है तो वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाती है तथा जिस घर में तुलसी लगी हो वहाँ से होकर बहने वाली वायु रोगनाशिनी हो जाती है। इसके अतिरिक्त इसके औषधीय गुणों के बारे में हमारा हर विद्यार्थी जानता है और अन्य लोगों को बताता है। आपको अपने आँगन के लिए तुलसी के बिरवे चाहिए तो हमारे यहाँ से कभी भी ले सकते हैं, परंतु बिक्री करने के मकसद से नहीं!
‘‘और हाँ, इतने निर्मम ढंग से इन बेजुबानों की हत्या करने के लिए तो हरगिज नहीं!’’
सुनकर वह व्यक्ति शर्मसार हो कहने लगा, ‘‘मैं आपके विद्यालय में पल्लवित किए जा रहे सुविचारों को अपने जीवन में ढालने का यत्न करूँगा।’’
उसने उन पौधों को कैरियर के चंगुल से निकालकर आगे साइकिल के हैंडल पर टाँग लिया, फिर अभिवादन करता हुआ अपने रास्ते बढ़ गया।
 
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