गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
पाप–बोध
संतिया ने बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘छप्पर का फूस सड़कर हियाँ–हुवाँ लदक गिया है। बारिस हो गिया तो घर के अंदर एक्को खाट निपनियाँ जगह नय रहेगी। असाढ़ भी पनरह दिन निकल गिया। लेकिन तू है कि तुझे कोय चिंता ही नय।’’
‘‘चिंता करने से छप्पर नया बन जाएगा का? अरे, ई ससुरी जुत्ता के मरम्मती में दो जून रूखा–सूखा ही मिल जाए तो गनीमत समझो’’–चित्तू ने दुखी मन से जवाब दिया। फिर जोर से हाँक लगाई, ‘‘अरी भगजोगनी, चापाकल से एक लोटा पानी ले आ दौड़ के।’’
जूते की सिलाई करते हुए वह बुदबुदाया, ‘‘साला गर्मी के कारन कंठ में लगता है आगिन लगा गिया है।’’
अचानक हल्ला सुनकर चित्तू जूते की सिलाई छोड़ फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। देखा, भगजोगनी खून से लथपथ सड़क पर पड़ी थी और कुछ लोग पास ही खड़ी एक कार की ओर दौड़े जा रहे थे।
क्रोध–प्रदर्शन शोक की अभिव्यक्ति, मार–पीट की धमकी, गाली–गलौज, बीच–बचाव......।और अंत में कारवाले से पाँच हजार रुपये लेकर चित्तू को देते हुए लोगों ने कहा, ‘‘भगवान की यही मर्जी थी। जन्म–मरण सब उसकी के हाथ है। जा, बेटी की मिट्टी को ठिकाने लगा....।’’श्राद्ध के बाद चित्तू अपनी पत्नी के साथ घर की मरम्मत में लग गया। छप्पर पर नया फूस डाला, दीवारों में लगे सड़े–गले बाँस बदल दिए गए, नया दरवाजा बना दिया गया। और जिस दिन मरम्मत का काम पूरा हुआ, उसी रात भीषण आँधी आई.....फिर बारिश शुरू हुई.....।
आधी रात का समय।
संतिया धीरे से बोली, ‘‘क्यों जी, सो रहे हो?’’
‘‘नय, नींद नय आ रही है।’’ चित्तू ने करवट बदलते हुए कहा।
‘‘एक ठो बात पूछूँ?’’
‘‘पूछो।’’
‘‘ऐसन आन्ही–बारिस में इस घर में आराम से लेटे हुए कहीं तुम्हें ईतो नय लग रहा है कि जोगनी मरी तो ठिक्के हुआ? बोलते–बोलते वह फफककर रो उठी।
चित्तू उद्विग्न हो उठा–कहीं संतिया ठिक्के तो नय कह रही है?
रात भर दोनों जागते रहे–नि:शब्द, बेचैन, विचारमग्न.....सुबह होते ही उन्होंने बच्चों को जगाया, अपना सामान समेटा और गठरियों को सिर पर लादे शहर की ओर रवाना हो गए।
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above