बच्चा अपनी दुनिया में खुश और खोया हुआ था। सीढि़यों के नीचे बैठा कपड़े की रंग–बिरंगी लीरों से बनी गुडि़या से खेल रहा था। कोठी की सफाई करती हुई उसकी माँ उसे खेलता देखकर निहाल हुई जा रही थी।
उनकी खुशी पर पत्थर गिराती हुई मालकिन आकर चिल्लाने लगी, दुलारी कितनी बार कहा है तुझे? अपने बच्चे को काम पर अपने साथ मत लाया कर। तेरा बच्चा जिस गुडि़या से खेल रहा है न उस पर मेरे बेटे टीनू की नजर पड़ गई है। जिदकर रहा है ये, गुडि़या लूँगा। धेल की गुडि़या पहीं सपर मन आ गया तो आ गया...देख तो इसने कैसी रोनी सी सूरत बना ली है....!
एकदम चुप थी दुलारी। नजर पड़ गई है तो हम क्या करें? जो चीज इन्हें अच्छी लगे इन्हें मिल जाए जरूरी है? मालकिन आग बबूला होने लगी, दुलारी सुनती नहीं? तेरा बच्चा तो मजे से खेल रहा है और टीनू इसे देख–देखकर परेशान हो रही है। ऐसा कर ये गुडि़या इस बच्चे से लेकर टीनू को दे दे....
किलसकर रह गई दुलारी। दोनों बच्चों की उम्र लगभग बराबर सी थी। तीन साढ़े तीन के बीच। न चाहते हुए भी दुलारी ने अपने बच्चे से गुडि़या टीनू को दे देने के लिए कहा। गुडि़या पर पकड़ मजबूत कर....उसे छाती से चिपकाते हुए बच्चे ने कहा, मैं नई....मैं को दूँ? गुलिया मेली है।
उसने अपने बच्चे को बहलाने की बहुत कोशिश की पर नहीं माना। उसने उसे डांटा और गुडि़या उससे छीनकर टीनू को देनी चाही पर बच्चा बुरी तरह चीखने–चिल्लाने लगा। गुडि़या वापिस अपने बच्चे के हाथ में देनी पड़ी उसे।
मालकिन ने अन्दर से मंहगे खिलौने टीनू को दिए, ये गुडि़या तो गंदी सी है। दफा कर इसे ये सुंदर–सुंदर खिलौने ले ले छोड़ इसे। देख तो कितने बढि़या खिलौने हैं?
टीनू टस से मस नहीं हुआ, यही गुडि़या लूँगा।
मालकिन ने वे मंहगे खिलौने नौकरानी के बच्चे को देकर उससे वो गुडि़या लेनी चाही पर उस बच्चे ने भी वे महंगे खिलौने ठुकरा दिए।
टीनू फर्श पर लेटकर पैर पटकने लगा। उसे रोता देखकर मालकिन बल खाकर रह गई। एकाएक अमीर और मालकिन होने का घुमंड मालकिन की आवाज में उतर आया, दुलारी ये ले पचास का नोट और गुडि़या अपने बच्चे से छीनकर दे।
कुछ समझ नहीं आ रहा था दुलारी को। उसने फर्श पर पड़े पचास के नोट की ओर देखा और समझाने लगी अपने बच्चे को, देख बेटे, अपने भैया को ये गुडि़या दे दे! मैं तेरे को और बना दूँगी। परबच्चा नहीं माना। टीनू के लिए भैया संबोधन सुनकर मौके की नजाकत को देखते हुए ताव खा कर रह गई मालकिन। दुलारी ने टीनू को समझाया, मैं कल आपके लिए इससे भी बढि़या बनाकर ला दूँगी।
टीनू लगातार रोए जा रहा था। मालकिन खीझ गई, तुझे जरा सी शर्म या लिहाज है या नहीं? मैं तुझे कह रही हूँ,अपने बच्चे से गुडि़या छीनकर दे दे। तुझे और पैसा चाहिए तो ले ले। सुना कि नहीं?
जवाब में दुलारी को ज्यों का त्यों देखकर मालकिन भड़क गई, तू इसी वक्त अपने बच्चे को लेकर कोठी से बाहर हो जा!
रास्ते में अपने बच्चे पर गर्व हो आया था कि वह उन लोगों के लालच यो धौंस में नहीं आया। अपनी गुडि़या के लिए अड़ा रहा। हमेशा तो हम लोग मन मारकर रह जाते हैं। इनको भी तो पता चले मन मारकर रह जाना कितना कष्टप्रद होता है?