जैसा कि किस्से सुने थे, नये पुलिस कप्तान ने आते ही आदेश जारी कर दिए–सभी गुंडे–बदमाश चौबीस घंटे में शहर छोड़ जाएँ। यहां कोई भी गैर कानूनी काम नहीं होने दिया जाएगा। बाजार में कोई भी खुलेआम शराब नहीं पीएगा।
खबर सारे शहर में जंगल की आग की तरह फैल गई। शहरी थाने में मुंशी ने अपने तौर पर लगभग सभी बदमाशों को फोन द्वारा सावधान कर दिया। तीसरे दिन एस.पी. ने फोन करके इस बारे में पता किया। कई फोन तो नो रिप्लाई हो गए। कुछ पर बच्चों ने बताया, ‘‘पापा कुछ दिनों के लिए दिल्ली चले गए हैं।’’
लोगों की जेबें कटने की घटनाएँ भी कम हो गईं।
एस.पी. लुंगी बनियान पहन कर बाजार में निकला। शराब के ठेके से एक पौआ लिया और ठेकेदार से गिलास मांगा। ठेकेदार ने न में सिर हिला दिया। वह ठेकेदार के सामने शराबियों की तरह रिरियाया ‘‘जनाब दे भी दो, पौआ ही तो है...क्या घर लेकर जाऊँगा... यहीं पीकर वापस कर दूँगा....नहीं तो गिलास के भी पैसे ले लो...।’’
‘‘नहीं भई, आजकल गिलास देना बंद है। घर जाकर पीओ..।’’
उसने पूछा, ‘‘आखिर अब ऐसा क्या हो गया, पहले तो सब चलता था?’’
तब ठेकेदार ने भेद खोला, ‘‘पहले तो सब चलता था, लेकिन अब जो एस.पी. आया है न, वह बड़ा हरामजादा है, कुछ नहीं चलने देता।’’
एस.पी. को लगा जैसे किसी ने उसके कंधे पर एक स्टार ओर लगा दिया हो।