गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - घनश्याम अग्रवाल
एक और ताजमहल
‘‘तुम हर बार मुहब्बत की बातें तो करते हो, मगर मेरे लिए आज तक कुछ नहीं लाए।’’ सुबकते हुए अपनी फटी ओढ़नी से आँसू पोंछते मुमताज ने कहा।
‘‘क्या करूँ मुमताज! पिछले तीन सालों से सूखा पड़ा है। हालत बड़ी खस्ता है। पर तू फिकर मत कर। इस बार गर बारिश हुई न तो मैं वायदा करता हूँ कि तेरे लिए गेहूँ के दानों का एक सुन्दर हार बनवा दूँगा। और हाँ, तेरी अँगूठी में भी चना जड़वा दूँगा। अब तो खुश है ना!’’शाहजहाँ ने मुमताज के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
और मुमताज फक् से हँसती हुई शाहजहाँ की बाँहों में समा गई।
आसमान में बादल घिर आए। बिजली चमकी। और देखते–ही–देखते संगेमरमर के टुकड़े बरसने लगे।
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above