दो बेटियों का वह पिता तीसरी बार पत्नी के गर्भवती होने पर ‘शर्तिया पुत्र ही पैदा होगा’की दवा लाया। गर्भावस्था के तीन माह पूरे होने न होते उसने भू्रण की जाँच करा डालो। जाँच में कन्या भ्रूण के पलने की जानकारी मिली। उसने दवा बिक्रेता उस होम्योपैथिक चिकित्सक को बुरा भला कहा और दवा के पैसे वापस माँगे तथा अपने भग्य को अलग से कोसा। साथ ही उसने अपनी गर्भपात कराने की इच्छा भी जाहिर कर दी।
चिकित्सक ने उसे दवा पैसे वापस करते हुए बड़े मार्मिक शब्दों में परामर्श दिया–‘‘दवा लो गारन्टेड थी, शिकायत अभी तक कोई आई नहीं, पर उसका भाग्य और पूर्व जन्म के संस्कार के लिए कोई क्या कहे? मेरा तो यही परामर्श है कि इस कन्या को भार न समझें बल्कि प्रभु का प्रसाद समझें–कौन जाने यह कन्या पुत्र से ज्यादा श्रेष्ठ साबित हो? इसे संसार में आने दें! अगली बार दवा नि:शुल्क दी जाएगी, बशर्ते कि आप चौथी सन्तान पैदा करने में इच्छुक हुए तो! शायद अगली बार अवश्य ही आपको पुत्र प्राप्ति हो!’’
और उस पिता ने चिकित्सक का परामर्श माल लिया और दोनों हाथ जोड़कर उसने एक टक आसमान की ओर ताकते हुए कहा–‘‘आपकी इच्छा पूर्ण हो प्रभु, आपकी इच्छा पूर्ण हो, वह कन्या इस घर में अवश्य पैदा होगी।’’
और उसके मन पर पड़ा मनों बोझ मानो उतर गया। वह एक अजीब से रोमांच और आह्लादकारी सिहरन से भर गया।