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लघुकथाएँ - देश - जयमाला
अंशमात्र
एक बार मैंने दुख से पूछा, ‘‘क्यों आते हो मेरे जीवन में हलचल मचाने?’’
दुख ने कहा ‘‘तुम्हारी परीक्षा लेने।’’
फिर एक दिन मैंने सुख से पूछा, ‘‘क्यों तुम बार–बार आते हो आकर वापस चले जाते हो?’’
सुख ने कहा, ‘‘तुम्हारी परीक्षा लेने।’’
फिर एक दिन मैंने दोनों से पूछा, ‘‘क्यों लेते हो तुम दोनों हमारी परीक्षा?’’
‘‘क्योंकि तुम हमेशा तत्पर रहती हो, तुम व्याकुल रहती हो परीक्षा देने के लिए।’’
फिर दोनों ने पूछा, ‘‘क्या कभी तुमने हवा से पूछा है कि क्यों बहती है वह, क्या कभी तुमने साँसों से पूछा है कि क्यों चलती हैं वह, क्या तुमने कभी सूरज से पूछा है कि क्यों निकलता है वह?’’
‘वे तो प्रकृति के अंशमात्र हैं। उनकी अपनी गति है। उन्हें हम नहीं रोक सकते।’’
‘‘फिर मैं भी तो प्रकृति का अंशमात्र ही हूँ, मेरी भी अपनी गति है जो कर्मो द्वारा तय होती है।’’
 
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