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शिष्टाचार
मैं उसके चेहरे पर मासूमियत और करुणा का मिला – जुला रूप प्रतिदिन देखता था। सीढ़ियाँ चढ़कर वह मेरे आफिस में हर शाम को दाखिल होता, अपने एक स्थायी ग्राहक को सांध्य समाचार पत्र की प्रति थमाता और उससे पैसे लेकर चला जाता ।
मैं देख रहा था कि कुछ दिनों से उसने अपने कार्य –कलाप में एक नया कार्य और जोड़ दिया था । वह आते समय भी मुझे जोर से आवाज देकर अभिवादन करने लगा और जाते समय भी । उसके आने और जाने में केवल दो मिनट का फासला होता, इस बीच में वह मुझे दो बार अभिवादन कर जाता । जब वह मुझे अभिवादन करता तो उसकी मासूमियत देखने लायक होती । मैं उसकी मासूमियत से अधिक उसके शिष्टाचार से अभिभूत था । आजकल के कन्नी काटने वाले समाज में उस छोटे बच्चे के मुस्कुराकर बिना किसी लालच के अभिवादन करने से मै काफी प्रभावित था और शायद इसी लिए मैंने उसके आने पर उसके हाथ में पाँच रूपये थमाने शुरू कर दिये थे ।
पहले–पहल तो वह चौंका था और मेरी ओर असमंजस से देखने लगा था, मानो पूछ रहा हो – यह किस लिए ? फिर उसने सांध्य समाचार पत्र की एक प्रति हवा में मेरे सामने लहरा दी । लेकिन मैंने उसे लेने से मना कर दिया । उसने पैसे लिए और अभिवादन कर चला गया ।
फिर मुझे भी नहीं मालूम कि यह क्रम कैसे बन गया । वह आकर मुस्कुराकर अभिवादन करता, मुझसे पैसे स्वीकार करता और चला जाता । अक्सर ऐसा होता कि मैं कार्य में व्यस्त होता तो वह वहीं खड़ा होकर अपने अभिवादन को तब तक दोहराता रहता जब तक मैं उसे पैसे न थमा देता । पैसे लेकर वह अभिवादन करता और चला जाता ।
एक रात वह अचानक मेरे सपने में आया । वैसे ही जैसे हकीकत में आता है । मासूमियत और करुणा से भरा हुआ । लेकिन उसके हाथ खाली थे । वह निकट आया तो मैं चौंका । उसके हाथ में कटोरा था ।
उसने अभिवादन कर कटोरे वाला हाथ मेरे सामने कर दिया ।
यह क्या? तुम भीख माँग रहे हो ! – मैंने क्रोधित होकर पूछा ।
प्रत्युत्तर में उसने पुन: मुझे अभिवादन किया ।
मैं एकाएक चिल्लाया – भाग जाओ । कोई भीख नहीं मिलेगी ।
घबराकर वह पलट लिया । कुछ दूर चला, फिर रुककर पलटा और मुझसे बोला – जब मैं अखबार बेचता था तो आप मुझे भीख देते थे । आज जब मैं आपसे भीख माँग रहा हूँ तो आप मुझे दुत्कार रहे हैं ।
इतना कहकर वह चला गया । बिना अभिवादन किए ।
कल सारी रात करवटों में काटने के बाद मैं सुबह से ही उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ ताकि उससे सांध्य समाचार पत्र खरीद सकूं ।
 
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