ब्रेकडाउन साइट से लौटकर आते ही रामलखन अपने गाँव जाने के लिए छुट्टी माँगने लगा तो मुझे आश्चर्य हुआ।
‘‘क्यों,अभी दो–तीन दिन पहले तो गाँव से आए हो रामलखन, फिर आज अचानक ही छुट्टी क्यों माँगने लगे?’’
‘‘साहिब, ऐसा है न कि हमें खबरि मिलिन्ह कै, घरबारी की तबियत बिगड़ि गीन्ह।’’उसने स्पष्टीकरण दिया।
‘‘अच्छा ,अभी–अभी साइट से आ रहे हो और आते ही तुम्हें खबर भी मिल गई।’’ मैंने व्यग्ंय किया।
वह बार–बार गांव जाने का आग्रह करने लगा तो मैंने डाँट दिया,
‘‘अपनी इन हरकतों के कारण ही तो तुम इतने वर्ष बाद भी अभी तक खलासी के खलासी हो। हर समय झूठ बोलते हो। सच बात बताओगे तभी छुट्टी मिलेगी।’’
मेरा क्रोध देख वह सकपका गया और धीरे से बोला,
‘‘साहिब गुस्सा न होई तौ सच–सच बताइ दैउ। बिरेक डाउन साइट पै बटी पूरीन कूं हम बचाय लीन। बालकनु तक पहुंच जाएं तौ बिनकी दावत हुइ जाए। जा महँगाई मा बरसत तैं पूरी नायँ देखी बालकनु।’’
सही बात पता चलते ही मेरा क्रोध रफू चक्कर हो गया और उसकी जगह सहानुभूति आ बैठी।
छुट्टी मिलते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। दो दिन पूर्व बनी सूखी पूरियों की पोटली लटकाए वह अपार प्रसन्नता से घर की ओर दौड़ लिया।