उम्र की ढलान पर तेजी से ढलते जा रहे वे दोनों अपनी जवान हो गई बेटी के लिए शादी का सामान खरीदने निकले थे।
पति को आज न जाने क्या हो गया था। पत्नी उसके व्यवहार को देख चकित हो उठी थी।
‘‘यह लिहाफ कैसा रहेगा?’’ पत्नी ने अपना सूखे छुआरे–सा चेहरा पति की ओर उठाया।
‘‘इतने लम्बे–चौड़े लिहाफ की भला क्या जरूरत है?’’ पति शोखी से मुस्करा पत्नी की ओर ताकने लगा। पत्नी के झुर्राए चेहरे पर शिकनें मिट–सी चलीं, ‘‘क्यों? डबल–बैड पर लिहाफ भी डबल चाहिए, तभी तो दोनों...।’’
‘‘हम लोगों को तो डबल लिहाफ की जरूरत नहीं पड़ी! और शादी के शुरू के सालों में तो कतई नहीं!’’ पति हँसा।
‘‘हिस्ट!दिमाग खराब है क्या? लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’ पत्नी बेतरह लज़ाई।
‘‘अब इस उम्र में कोई क्या कहेगा! क्हकर हमारा क्या कर लेगा!’’ वे फिर हँसे।
‘‘यह शृंगारदान कैसा रहेगा.....?’’ पत्नी फर्नीचर की दुकान में एक शृंगारदान के आदमकद शीशे के सामने जा खड़ी हुई। पीछे से पति भी उससे सटकर आ खड़ा हुआ। दोनों के प्रतिबिंब शीशे में एक दूसरे से सटे हुए थे।
‘‘इसकी क्या जरूरत है....उस उम्र में तो तुम बिना इसके ही मुझे इतनी मोहक और सुन्दर लगती थीं कि....’’ पति ने बुढ़ा गई पत्नी के कंधे पर हाथ रख दिए। पत्नी नई बछिया की तरह उचककर अलग हो गई।
‘‘तुम सचमुच आज कुछ खा आए हो ! इस तरह बौराने की उम्र है क्या यह?’’ पत्नी ने आँखों ही आँखों में पति को घुड़का।
‘‘यह नहीं, हम उम्र की बात कर रहे हैं जिस उम्र में इस मरे शृंगारदान की भला किसी को क्या जरूरत!’’ वह हँसने लगा।
पत्नी उस दूकान में एक खूबसूरत डबल बैड के पास जा खड़ी हुई। उसने पति की ओर ताका, ‘‘यह कैसा रहेगा.....?’’
‘‘किसके लिए.....?’’ पति ने पत्नी की आँखों में देखा।
‘‘लड़की के लिए....और किसके लिए।’’
‘‘यह तो बहुत चौड़ा लग रहा है.....। इसका आधा हिस्सा खाली पड़ा रहेगा। फिर क्यों न सिंगल ही लिया जाए। हम लोगों को तो डबल की जरूरत ही नहीं पड़ी!’’
आस-पास दूसरे ग्राहक भी खड़े थे, सुनकर हँसने लगे। पत्नी बुरी तरह झेंप गईं, ‘‘तुम्हारा सचमुच दिमाग खराब हो गया है!’’
कहकर वह दूकान से बाहर हो गई। पति उसके पीछे–पीछे बाहर पहुँचा तो आश्चर्यचकित रह गया। पत्नी का सूखा–छुआरा चेहरा अचानक ही चालीस साल पीछे लौट गया था.....उसे लगा, यह उसकी लड़की की माँ नहीं है बल्कि कोई सोलह–सतरह बरस की नव–विवाहिता है ; जो अपने पति के साथ चलने और खड़ी होने तक में लजा रही है।