गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - दिनेश भट्ट
सफलता
लेखन में राज्य स्तर का अवार्ड लेकर लौटा। तालियों की गूँज से भरे वातावरण में राज्यपाल महोदय से अवार्ड लेकर अपने स्थान पर वापस बैठते हुए मेरे रोमांचित होने की सीमा नहीं थी। अपनी इस सफलता के रोमांच के बीच पिताजी याद आ गए। जब मुझे छोटी–छोटी सफलताएँ मिलती थीं तो पिताजी उन्हें बड़ी सफलता कहकर मेरा हौसला बढ़ाते थे।
सोचा....काश, पिताजी जिंदा होते तो कितने खुश होते मेरी इस सफलता पर, मन हुआ आज ही घर जाऊँगा। पिताजी की तस्वीर पर यह अवार्ड रखूँगा। माँ के चरण स्पर्श करूँगा। गाँव पहुँचा। माँ की आँखों में मोतियाबिंद था। उन्हें अवार्ड दिखाते रुक गया। छोटा भाई रोजगार की तलाश में कहीं गया था। पिताजी की फोटो के पास गया। दीवार का सारा प्लास्टर उखड़ गया था। फोटो न जाने कहाँ थी। तभी पड़ोस की कृष्णा मौसी आ गई। सोचा इन्हें ही अवार्ड दिखाता हूँ।
अवार्ड दिखाता इससे पहले ही वे बोली, ‘‘बेटा, कब आए? ऐसे ही आ जाया करो, कभी–कभी। क्या हाल हो गया है इस घर का तुम्हारे पिताजी के मरने के बाद । तुम भी नहीं रहते यहाँ, हो सके तो माँ की आंखों का आपरेशन करा दो। तुम्हारी बहन बीस की हो गई है, उसे ब्याहना नहीं है क्या? छोटा भाई इतना पढ़–लिखकर बेरोजगार घूम रहा है।’’
मैं एकटक मौसी को देखता रहा। मेरी आँखें नम थी। मैंने अवार्ड को चुपचाप बैग में रख लिया। कहीं से पिताजी की आवाज उभरी। बेटा ! सफल होने के लिए अभी तुम्हें बहुत कुछ करना है ।
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above