जैसे ही मैंने अपने दोस्त के घर कदम रखा देखा कि पानी का नल खुला हुआ था और पानी अविरल बहे जा रहा था, हालाँकि मेरा दोस्त पास ही कुर्सी पर बैठा था।
मैंने कहा, ‘‘घनश्याम क्या बात है भई, यह नल क्यों खुला छोड़ रखा है, पानी यूँ ही बहे जा रहा है’’
उसने लापरवाही से उत्तर दिया, ‘‘बहने दे न यार, अपना कौन सा बिल आ रहा है।’’
मुझे बहुत बुरा लगा, परन्तु मैंने संयम रखते हुए कहा, ‘‘वह तो ठीक है पर एक बात है जो शायद तुझे ध्यान में नहीं है।’’
‘‘वह क्या’’, उसने पूछा।
मैंने कहना शुरू किया, ‘‘यह तो तुझे पता ही है कि प्यासे को पानी पिलाना कितना बड़ा पुण्य माना जाता है। दुश्मन भी अगर आ कर पानी माँगे तो उसे पानी जरूर दिया जाता है।’’
घनश्याम ने हामी भरी, ‘‘हाँ भई, यह तो सभी जानते हैं।’’
मैंने आगे कहा, ‘‘और तुझे यह भी पता है कि गर्मियों में लोग रुपये इकट्ठे करके पानी की छबीलें लगवाते हैं ताकि राह चलते प्यासे लोगों को पानी पिला कर पुण्य कमा सकें।’’?
‘‘हाँ जानता हूँ’’, वह बोला।
‘‘तो फिर तू इतनी बड़ी गलती कैसे कर रहा है?’’ मैंने प्रश्न किया।
वह चौक पड़ा, ‘‘गलती, कैसी गलती? मैंने तो कोई गलती नहीं की?’’
मैं मुस्कुरा दिया, ‘‘यही तो सबसे बड़ी गलती है कि तुझे जरा भी ज्ञान नहीं कि तूने क्या गलती की है। अब देख, लोग तो पानी पिला कर पुण्य कमाते हैं परन्तु तुम पानी को इस तरह व्यर्थ बहा कर ‘सिर्फ़ कुछ न करके भी’ पुण्य कमाने का एक आसान- सा मौका गँवा रहे हो ,बल्कि उल्टा पाप के भागीदार भी बना रहे हो।’’
पाप और पुण्य की बात सुन कर वह और उत्सुक हो गया क्योंकि वह धर्म–कर्म में काफी रुचि रखता था और बाकायदा व्रत रखता और मंदिर जाया करता था। वह बोला, ‘‘भई मैं कैसे पाप कर रहा हूँ?’’
मैंने उसे उसके तरीके से समझाया, ‘‘अब देखो, जो पानी तुम व्यर्थ बहा रहे हो उसके कारण दूसरे लोग जिनके पास यह पानी नहीं पहुँच रहा है, वे सभी इससे वंचित रह जाएँगे और उन्हें पानी दूर–दूर से लाना पड़ेगा। अब वे परेशान होंगे तो बद्दुआएँ देंगे और उन्हें कोसेंगे जिनकी वजह से उन्हें पानी नहीं मिल पा रहा, जिनमें तुम भी शामिल हो, अत: दूसरों को कष्ट पहुँचा कर उन्हें पानी से वंचित रख कर तुम पाप के भागीदार बन रहे हो। इसके विपरीत यदि तुम पानी यूँ ही व्यर्थ में नहीं बहने दोगे अर्थात् जरूरत के बाद नल बंद कर दोगे, तो यही पानी दूसरे लोगों तक भी पहुँचेगा और तुम स्वत: ही पुण्य कमाने के भागीदार बन जाओगे, समझें’’
समझा,’’ मेरे दोस्त ने उठ कर झट से नल बंद कर दिया,‘‘आगे से मैं पानी व्यर्थ नहीं बहने दूँगा और हाँ, मैं यह बात लोगों को भी समझाऊँगा।
उसे ‘ पुण्य कमाने’ की बात समझ में आ गई थी।