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जिंदगी
पूरा सप्ताह भी तो नहीं बीता था ताऊजी को गुजरे हुए। परन्तु लग रहा था कि पूरा एक युग बीत चुका हो। संयुक्त परिवार में सदस्यों की बड़ी संख्या और संवेदना प्रकट करने आए मेहमानों की गहमा गहमी के बावजूद समय कट नहीं रहा था। कारण शायद टी.वी. जो बंद था। उनके यहाँ ही नहीं बल्कि पड़ोस के घरों में भी टी.वी ट्राजिस्टर आदि की आवाज सुनाई नहीं देती थी। कस्बाई शहर में लोगों की इंसानियत इस समय तक मरी नहीं थी। इस अल्प अवधि में ही परिवार के लोग दुनिया से कट कर रह गए थे। समाचार तक के लिए टी.वी. खोलने में संकोच होता। यहाँ तक समाचारों तक के लिए अगले दिन अखबार की प्रतीक्षा करो।
पाकिस्तान और भारत का सेमी फाइनल था। भइया अपने दोस्त के यहां चले गए थे। परन्तु लड़किआँ और औरतें कहाँ जातीं। अब मालूम नहीं हिना का क्या हुआ होगा? यह सीरियल वाले ऐसे मौके पर खत्म करते हैं। डायवोर्स हुआ या नहीं? किससे पता करें? कल कॉलेज में रीमा से ही पता कर लेंगे। या फोन ही लगा लिया जाए! पर मम्मी का डर था। उनको भी तो ‘‘सास भी कभी बहू थी’’ बहुत पसंद है। कल वह छोटी चाची से इस संबंध में कुछ खुसफुस कर तो रही थीं। परेशान तो दादी जी भी कम नहीं थीं। प्रात: कालीन प्रसरण में स्वामी जी का प्रवचन उनकी दिनचर्या का नियमित हिस्सा है। अब धर्म के पालन और दुनियादारी के निर्वाह का एक साथ पालन कैसे होता? ताई जी की ओर देख कर कलेजा मुँह में आता। ताऊ जी की उम्र ही क्या थी। मुश्किल से पचास रही होगी। आज तेरह दिन हो गए थे। तेरहवीं का भोज संपन्न हो चुका था। माहौल कुछ हल्का था। ड्राइंग रूम में सभी एकत्र थे। रात हो गई थी। सबके चेहरों पर आतुरता थी। चित्रहार का समय हो गया था। तभी अप्रत्याशित बात हुई, ताई जी उठीं,टी.वी. का स्वीच आन किया और सबके लिए चाय बनाने की बात कर रसोई की ओर बढ़ गई। लोग उल्लसित हो उठे। उनके मुँ से हुर्रे निकलते–निकलते रह गया था।
 
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