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हाथ वाले
शो शुरू होने में अभी देर है और वह इस तरह के खाली समय का उपयोग भी सार्थक ढंग से करता है.....यानी फुटपाथ पर बिखरी किताबों के ढेरों को देखना.....टटोलना। उसका अनुभव है कि इन फुटपाथी ढेरों में प्राय: बड़ी उम्दा किस्म की किताबें हाथ लग जाती हैं।
उसके कदम उस परिचित दूकान पर जाकर रुक गया। यह बहुत पुरानी फुटपाथी दूकान है और इसके मालिक के दोनों हाथ कटे हुए हैं।
दुकानदार उसे देखकर हल्के–से मुस्कराया और उसने एक तरफ इशारा किया....जिसका मतलब था कि इस ढेर से आपको कुछ मिल ही जाएगा। वह किताबें देखने लगा। तभी उसकी बगल में एक युवक आकर खड़ा हो यगा। उसने उसे एक नजर देखा....वह युवक भी किताबें छाँटने में लग गया। कुछ देर बाद उसकी नजरें फिर उसी युवक की ओर उठीं और उसने देखा कि एक किताब को बगल में दबाए वह भी किताबों को उलट–पलट रहा था।
दुकानदार अन्य ग्राहकों को निपटाने में लगा हुआ था कि वह युवक चल दिया। उसने देखा कि उसकी बगल में पुस्तक दबी है। बिना पैसे दिए..यानी....ऐसे ही....चोरी...और उसके मुँह से निकल पड़ा, ‘‘वह तुम्हारी किताब ले गया है....बिना पैसे दिए....!’’ उसने जाते हुए युवक की ओर इशारा भी किया।
‘‘मुझे मालूम है भैयाजी....’’
‘‘यार बड़े अहमक हो। जब मालूम है तो रोका क्यों नहीं?’’
कुछ देर वह चुप रहा और फिर जवाब देते हुए बोला, ‘‘चोरी हाथ वाले ही तो कर सकते हैं।’’
 
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