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स्याह–सफेद
अधेड़ उमर की नौकरीपेशा माँ से जवान होते हुए बेटे ने एक दिन कहा, ‘माँ, चेहरे पर रंग–रोगन और बालों में खिजाब लगाना अब बंद करो तुम। तुम्हारी उमर की महिलाएँ सफेद बालों और बिना लिपिस्टिक के ज्यादा डिग्नीफाइड लगती हैं।’’
माँ मुस्करायी और बोली, ‘‘बेटे, दफ्तर आने–जाने के लिए कार का इंतजाम कर दो, फिर मैं अपनी उमर के हिसाब से रहूँगी।’
‘‘कमाल है! इसमें कार की बात कहाँ से आ गयी?’’ बेटे ने तुनक कर कहा, ‘‘तुम्हें इस उमर में छोकरियों की तरह सजते देखकर मुझे शर्म आती है।’’
‘‘मगर बसों में मेरी उमर की सफेद बालों वाली औरतों को खड़ी देखकर भी न देखने का बहाना बनाये, महिलाओं की सीटों पर डटे तुम्हारी उमर के नौजवानों को तो जरा भी शर्म नहीं आती। भीड़ चाहे जितनी हो, पर रँगे बालों और रंग–रोगन की बदौलत ही मैं आराम से बैठकर सफर करती हूँ।’’
 
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