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अनिश्चय
केरल निवासी जोसफ सीमा सुरक्षा बल में हवलदार है। उग्रवाद पर काबू पाने के लिए उसकी बटालियन को पंजाब भेजा गया है। वह भी साथ आया है। खाना खाते समय बटालियन के अधिकारियों ने पंजाब समस्या पर रोशनी डाली थी। जवानों को बताया गया था कि पंजाब में मुख्य रूप में दो कौंमें बसती हैं। बहुसंख्यक सिख हैं। वे अल्प संख्यक हिन्दुओं को बाहर निकालकर ‘खालिस्तान’ बनाना चाहते हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वे हिंसा पर उतर आए हैं। नित्य हिन्दुओं के कत्ल होते हैं। हिन्दुओं में डर है। दोनों सम्प्रदायों में बेहद नफरत है। जवानों को उग्रवाद पर काबू पाना है, मजलूमों की रक्षा करनी है।
पहले दिन जोसफ की ड्यूटी एक बारात की सुरक्षा पर लगी। विवाह हिन्दू लड़की का था। ऐसे अवसर पर उग्रवादियों की ओर से वारदात करने का खतरा बना रहता है।
जोसफ मुकाबला करने के लिए तैयार था।
बारात आई तो जोसफ चकरा गया। दुल्हा हिन्दू था और उसका मामा सिख। दुल्हे के दोस्त नाच रहे थे। नाचने और रुपये वारने वालों में आधे से ज्यादा सिख थे। बारात में सिखों की संख्या आटे में नमक की तरह नहीं खिचड़ी में घी की तरह थी।
अगले दिन उसकी ड्यूटी पुलिस मुकाबले में मरे एक नौजवान का दाह संस्कार करवाने में लगी। अर्थी देखकर वह चक्कर में पड़ गया। अर्थी को कंधा देने के वाले चार लोगों में से दो हिन्दू थे। दीवार से सिर टकरा–टकरा कर बेहाल होने वाला लड़के का मौसा भी हिन्दू था। अर्थी के साथ हिन्दू दाल में कंकड़ों की तरह नहीं रड़कते थे बल्कि घी में शक्कर की तरह थे।
आज उसी ड्यूटी चौक में है।
यहाँ वह और भी असमंजस में पड़ गया है। मोटर साइकिल वाला सिख है, पीछे बैठने वाला हिन्दू। जीप का चालक हिन्दू है और बीच में बैठा परिवार सिख। जोसफ हैरान है। उसे समझ में नहीं आ रहा कि पंजाब के बारे में वह स्वयं असमंजस में है या दिल्ली में बैठे उसके अधिकारी।
 
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