“अरे तू बड़ा मास्टर बना फिरता है, मुझे भी कोई चार अक्षर सिखा दे।” दीपी ने अपने छोटे देवर से कहा।
“पढ़ा देता हूँ भाभी, यह कौनसी बड़ी बात है।” वह खचरी हँसी हँसता है।
“अच्छा मैं पढ़ने बैठ रही हूँ।”- दीपी किताब खोल कर बैठ गई।
“मास्टर जी, यह क्या है? दीपी एक अक्षर पर उँगली रख कर पूछती है।
“भाभी, तुम बहुत सुंदर हो।”
“मास्टर जी, अब मैं आपकी भाभी नहीं, विद्यार्थी हूँ।”
“अच्छा-अच्छा, भाभी सच-सच बताना रात को जब तुम बिजली…”
“मैने कहा जी, अब आप मास्टर हो और मैं…”
“तब तुम्हें मेरा ख्याल…”
वह कुछ कह ही रहा था कि दीपी का थप्पड़ उसके मुँह पर पड़ा। वह बोली, “स्कूल में भी यही करतूतें करता होगा। बड़ा मास्टर बना फिरता है! लच्छन देखो इस की मास्टरी के।”