दंगों के कारण दो गलियों का फर्क होते हुए भी दोनों लंगोटिया यार पूरे सोलह दिन बाद मिल रहे थे, मिलते ही जबानी जमाखर्च में माँ–बहन की, धौल धप्पड़ दर्ज किए।
–क्यों बे, बछिया के ताऊ,इत्ते काफिर हलाक है गए तू कैसे बच गयो रे पंड्डत?
–और तू मुर्गी के, इत्ते कटुए कट गए तू चौं नाय कटौ बे मुल्ला?
–अबे मैंने सोची कि संग–संग खेले कूदे, पढ़े–लिखे, आवारागर्दी करी। सो वाके घर ऊ संगी -संग चलिंग्गे।
इसी के साथ उन्होंने एक गली हिलाऊ कहकहा लगाया। उँगलियों में फँसे राशन के थैलों को वहीं गली में पटका....और गले लग गए।