गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
गंध
वटवृ़क्ष की ऊँची टहनियों पर कौवी। का घोंसला था। कौवी ने दो अंडे दिए हुए थे। ममता के वशीभूत कौवी कभी अंडों के पास बैठी रहती, कभी आसपास टहनियों पर बैठी चौकस निगाहों से इधर–उधर निहारती।;क्योंकि कौआ जाति को यह भ्रम रहता है कि प्रजनन काल में प्रसूता कौवी के साथ प्राय: धोखा होता है। यह जितने अंडे देती है, उनसे ज्यादा सेती है।
भारी पाँव एक कोयल अंतिम क्षणों में उस घोंसले में आ बैठी थी। उसने घोंसले में झट अंडा दे दिया था। प्रसव पीड़ा से दुबलाई कोयल जब उड़ने लगी, तो टहनी पर बैठी कौवी की नजर उस पर पड़ गई। कौवी ने कोयल की टाँग पकड़ी और वही रोक लिया ।जो रंगे हाथों पकड़े गए चोर की हालत, वही कोयल की दशा । क्षुब्ध कौवी कहने लगी, “तुम्हारे मीठे कंठ का सारा जग कायल है। तुम कितनी काबिल हो,यह कितनों को मालूम है। वासना में डूब जाना एक बात है, वात्सल्य का निर्वहन दूसरी बात।’’
कोयल का प्रसव से निवृत्त होने का सुख बूँद–बूँद सूख गया था। अपराधबोध से झुकी उसकी नजरें शर्मिदगी और आत्मग्लानि की हद तक पहुँच गई थी। कौवी आँखें सिकोड़कर चिनकी, ‘‘निर्मम हो तुम, प्रसव किया और उड़ गई। माँ में ममता होती है। दिन–रात अंडों पर बैठी रहकर वह उनमें से बच्चे कैसे निकालती है, उस कष्ट को तुम क्या जानो।’’
कौवी के व्यंग्य बाणों से बिंघी कोयल अपने अंडे को चोंच में भरकर जब उड़ने लगी तो दया से पसीज गई कौवी ने उसे रोक दिया, ‘‘रहने दो। जीव हत्या कर बैठोगी। माँ की ममता की गंध से माँ में ममता पैदा होती है। इस गंध को वह क्या जाने जिसके संस्कारों में ही खोट है।’’
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above