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छत्रछाया
घर के पिछवाड़े में खाली जगह पर पेड़ लगे हुए थे। पिताजी की मृत्यु के बाद लड़के ने कटवाने शुरू कर दिए। जब एक पेड़ शेष रहा तब माँ ने कहा,
‘‘बेटा, इस पेड़ को रहने दो, काटो मत।’’
‘‘क्यों माँ?’’
‘‘यह पेड़ तुम्हारे पिताजी का लगाया हुआ है,’’’
‘‘किसी पेड़ को कोई न कोई लगाता ही है माँ।’’
‘‘मैं इसी पेड़ में तुम्हारे पिताजी की आत्मा का अहसास करती हूँ। जब भी मैं इसकी छाँव में बैठती हूँ तो मन को सकून मिलता है, और यूँ लगता है कि मैं उनके स्नेह, सानिध्य व छत्रछाया में बैठी हूँ ।’’
और लड़के ने उसकी बगल में एक और पेड़ लगा दिया।
 
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