अपने बच्चों से तो सभी को प्यार होता है, उन्हें भी था; लेकिन अब कुछ ज्यादा ही हो गया है। उन्होंने तो सुना था कि जब व्यक्ति आँखों से दूर हो जाता है, तो समय के साथ उसकी स्मृतियाँ धुँधली पड़ने लगती है, लेकिन उनके साथ तो इससे उलटा हो रहा है। जब से उनके बच्चे बड़े होकर नौकरी के सिलसिले में दूर गए हैं, उन्हें उनकी कहीं अधिक याद आने लगी है। यूँ तो उनसे फोन पर रोज ही बातें हो जाती हैं, लेकिन बातों का क्या, दूरी तो दूरी है, बातों से तो नहीं मिटती। अत: बच्चों के फोटो देखकर वह अक्सर भावुक हो जाते हैं, पुरानी यादों में खो जाते हैं।
कुन्नू कितनी चंचल थी, चिड़िया–सी फुदकती रहती थी, घर–भर में। सज–सँवरकर रहना अच्छा लगता था उसे। कितनी बातें बनाती थी.....मीठी–मीठी। समय की बड़ी पाबन्द थी, मजाल कि कभी स्कूल का होम वर्क करने में कुछ देर हो जाए।
और मुन्नू, पक्का शरारती था वह तो! यह उठाया, वह गिराया; यह तोड़ा, वह फोड़ा। सारा दिन झगड़ता रहता था, दीदी से। डैडी का खास दुलारा था, डैडी को पटाना भी खूब आता था उसे। पढ़ने में कम, खेलकूद में ज्यादा रुचि थी उसकी।
वह इन्हीं स्मृतियों में खोए थे कि पत्नी आ गई। पत्नी जानती है, उनकी मनोदशा। अत: कहने लगी, ‘‘लगता है, आज फिर बच्चों की याद आ गई है।’’
‘‘हाँ, मालती!’’ वह बहुत भावुक हो गए थे, ‘‘मालती,बहुत कठिन है बच्चों से दूर रहना। जब पास थे, तब तो कभी ऐसा नहीं लगता था, लेकिन जब से दूर हुए हैं....।’’
‘‘लेकिन इसमें भावुक या परेशान होने की क्या बात है; बच्चे बड़े होंगे, तो जाएँगे ही बाहर। घर में बैठे–बैठे तो काम नहीं चलता। नौकरी–चाकरी करनी है, तो बाहर भी जाना ही पड़ेगा।’’ बड़े सहज भाव से यह सब कह दिया था पत्नी ने।
लेकिन वह कवि हैं, भावुक हैं, संवेदनशील हैं। सब–कुछ जानते हैं, लेकिन मन का क्या करें, जो मानता ही नहीं। अत: कहते हैं, ‘‘कितना अच्छा होता मालती, अगर बच्चे बड़े ही न होते। बच्चे बड़े क्यों हो जाते हैं, छोटे ही क्यों नहीं रहते!’’
मालती को लगता है, वह स्वयं बच्चा बन गए हैं।