वे दो भाई थे। दोनों भाइयों के बीच मकान, खेत और पुश्तैनी जायदाद से जुड़ी लगभग हर चीज़ का बंटवारा हो चुका था, यहां तक कि दौलत के बंटवारे के दरम्यान दोनों में भी दरारें पड़ गई थीं। दरारें इतनी लम्बी–चौड़ी थीं कि उन्हें पाटना मुश्किल था। पंचायत की देख–रेख में आँगन में उठने वाली दीवार के साथ–साथ उनके दिलों में भी दीवारें उठ गई थीं। दीवारें इतनी ऊँची थीं कि उनके आर–पार लाँघना कठिन था। गाली–गलौज और सिर फुटौबल भी उनके बीच हुआ था। यही कारण था कि दोनों एक–दूसरे को हमेशा नफ़रत की निगाहों से ही देखते। दोनों एक–दूसरे के दुख में सुखी और सुख में दुखी होते। अगर बड़े भाई पर कोई विपत्ति आ पड़ती तो छोटा खुश होता और छोटा किसी आफ़त में फँस जाता तो बड़े को खुशी होती।
तमाम तरह की चीज़ों के बँटवारे के बावजूद घर के आगे का दालान अभी किन्हीं कारणों से नहीं बँटा था। दालान का उपयोग अभी साझे में ही था।
साझे के दालान में अभी दीवार नहीं उठी थी। इसलिए उसका उपयोग दोनों भाई अपनी–अपनी सुविधा से करते थे। एक भाई दालान के एक कोने में अपनी भैंस बाँधता तो दूसरा कोने में पुआल का बंडल रखता।
उसी दालान के एक कोने में बिछी चौकी पर एक दिन खूब सवेरे छोटे भाई का नौ–दस माह का नन्हा –सा बच्चा, मुँह से कुछ–कुछ अस्फुट स्वर निकालता हुआ खेल रहा था। कभी–कभी ज़ोर से किलकारी भी भरता। उसकी किलकारियों में मानो मिसरी घुली थी। उसकी निष्कलुष और निर्दोष किलकारियों से कोई भी रससिक्त हो सकता था, लेकिन उस समय वही पर मुँह धो रहे ‘बड़े भाई’ पर इसका असर न हुआ। उल्टे उसका मन नफ़रत से भर गया। उसने दाँतों पर दातुन की रगड़ को कुछ तेज़ करते हुए तीख़ी निगाहों से बच्चे की तरफ़ देखा और बुदबुदाया, ‘‘साला साँप का बच्चा...’’
फिर उसने बच्चे की तरफ़ से अपना मुँह फेर लिया। बच्चे की मोहक किलकारी दालान में एक सिरे से दूसरे सिरे तक गूँजती रही। मगर इस किलकारी के प्रभाव से वह अपने को सायास बचाता रहा और हाथ–मुँह धोने का उपक्रम करता रहा हाथ– मुँह धोकर जैसे ही वह चौकी के निकट खड़ा हुआ, तो न चाहते हुए भी बच्चे की तरफ़ उसका ध्यान चला ही गया।। आँखें चार होते ही बच्चा एक बार फि़र ज़ोर से खिलखिलाया। उसके हाथ अनायास ही बच्चे की तरफ़ बढ़ गए, लेकिन तत्क्षण ही मन के किसी कोने में सिमटा यह भाव उसके दिमाग़ में उतर आया कि यह तो दुश्मन का बच्चा है। दिमाग में यह बात देखकर बच्चा फिर खिलखिलाया। वह घर के अंदर जाने की बजाय वही खड़े होकर चारों तरफ़ देखने लगा। उस वक़्त वहाँ कोई न था सिवा उस बच्चे के।
जब वह पूरी तरह से इत्मीनान हो गया कि बच्चे और उसके सिवा यहाँ और कोई नहीं है ,तब उसने आव देखा न ताव एक झटके से बच्चे को उठाउया और...और सीने से लगाकर बेतहाशा उसके गालों को चूमने–दुलारने लगा...