प्रिय पाठक,
मेरा नाम अमन अली है। मैं हमेश से अमन–पसंद रहा हूँ, मैं शहर के जिस मुहल्ले में रहता हूँ, वह मुसलमानी मुहल्ला खुदागंज है, ठीक उसके सामने एक पतली -सी सड़क गुज़रती है। सड़क के दूसरी और विष्णुपुरी है। ये अलग–अलग दो मुहल्ले नहीं, बल्कि समन्वित सभ्यता और संस्कृति के देश–सरीखे हैं।
मेरी एक निहायत खूबसूरत पत्नी थी, है नहीं, और एक मासूम -सी बेटी मासूमा है। एक दिन सड़क के किनारे नवनिर्मित मंदिर और उसके निकट पीर के मज़ार के कुछ कट्टर अनुयायियों के किसी बात पर विवाद हो गया, विवाद ने उग्र रूप धारण कर लिया और कुछ अवसरवादियों ने साम्प्रदायिक रंग लेकर दंगा करवा दिया.....
तभी एक रात हमारे घरों पर हमला हुआ। मेरे पड़ोस में अस्सी वर्षीय वृद्ध शरीफ़ भाई को दंगाइयों ने हलाल कर दिया और उनकी एक नौ माह की पोती शबाना की साँसों को असमय ही रोक दिया। जब वे लोग मेरे घर का दरवाज़ा तोड़ रहे थे, तो मैं जाग चुका था और मासूमा को गोद में उठाकर छत पर चढ़ने लगा। मेरी पत्नी नाज़ को प्रसव होने को था। अत: वह चल भी नहीं पाई। मैं अभी छत पर चढ़ा ही था कि मेरे घर का दरवाज़ा टूट गया और दंगाई घर में घुस आए। मैं अँधेरे में छत पर चढ़कर दम साधे छिपा रहा, तभी एक कर्णभेदी स्वर सुनाई दिया।
कहाँ है अमन का बच्चा? और फिर एक साथ कई लोगों का सम्मिलित अट्टहास सुनाई दिया।
मुझे ऐसा लगा कि यह आवाज़ तो जानी पहचानी हैं !यह हँसी तो रोज़ सुनता हूँ, पान की दुकान पर एकत्र लोगों की बातों में बीच, कॉमेडियन मगर आज यह आवाज़, यह अट्टहास मेरे घर में कैसे घुस आया? मैं काफी देर दिमाग़ पर ज़ोर देता रहा, मगर कोई विशेष शक्ल नहीं पैदा कर पाया।
मैं दुबकता हुआ अपनी छत छोड़कर सामने सड़क से मिली दूसरी ओर अपने कवि मित्र ‘शांति प्रिय’ की छत पर कूद गया। शांतिप्रिय मेरी ज़रूर मदद करेगा। अभी मैं उसकी छत पर लेटा अपनी उखड़ी साँसों और धड़कते हुए दिल को दिल को सामान्य कर ही रहा था कि एकाएक उसके घर के किवाड़ों को खटखटाया जाने लगा और फिर मेरे किवाड़ों की तरह उन्हें भी तोड़ दिया गया। फिर एक जाना–पहचाना और तीखा स्वर मेरे कानों में पड़ा, ‘कहाँ है शांति की औलाद?’ अरे यह तो वही आदमी है, जो मेरे घर पर , ‘‘कहाँ है अमन का बच्चा?’’ कह रहा था। ये हिन्दू नहीं है? मैं तो समझ ही रहा था कि हिन्दू लोग मेरे घर पर चढ़ आए हैं, मगर ये लोग तो वही हे, जो मेरे घर पर चढ़े थे। वही सम्मिलित तीव्र हँसी, अट्टहास। तो क्या ये हिन्दू और मुस्लिम दोनों हैं? अगर ये मुस्लिम होते, तो क्या मेरे अनन्य कवि मित्र शांतिप्रिय जैसी प्रतिभा को बेइज्ज़त करते? नहीं–नहीं, ये दंगाई शायद किसी भी धर्म से सम्बन्ध नहीं रखते। कोई भी धर्म किसी को भी कष्ट पहुँचाने का सबक सनहीं देता। शायद इनका धर्म ही दंगा है।
जब सुकून हुआ, तो मैं वापस लौटा। नाज़ मेरी पत्नी,बरामदे में शून्य में देखती हुई- सी निर्जीव लेटी थी। उसके दोनों हाथ उसके लहूलूहान सीने पर थे। उसी रात शांतिप्रिय तथा उसके सारे परिवार को मौत के घाट उतार दिया गया और उसी रात से उनकी एक जवान लड़ी गायब है।
पाठक,
बचपन में मैंने बैताल की कहानियाँ पढ़ी हैं। जब राजा विक्रममादित्य हाथ में तलवार लेकर श्मशान में जाकर शव को पेड़ से उतार का कंधे पर रखकर चलता है, तब शव स्थित बैताल राजा से कहता है–राजन! श्रम को भुलाने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ।
सुनो....अंत में बैताल राजा से कहानी से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है और कहता है कि यदि तुमने मेरे प्रश्न का सही–सही उत्तर नहीं दिया, तो तुम्हारा सिर फटकर टुकड़े–टुकड़े हो जाएगा।
पाठक,
इसी प्रकार मैंने भी आपको एक कहानी सुनाई है, सचमुच की कहानी। आपसे भी इसका गहरा सम्बन्ध है। मैं आपसे एक प्रश्न पूछता हूँ, वे कौन लोग है, जो इंसानियत और अवाम के दुश्मन हैं, जो हिन्दू और मुस्लिम दोनों कौमों को एक साथ यातना दे रहे हैं और जिन मुट्ठी भर लोगों की वजह से हम अभी भी शारीरिक और मानसिक यातना भोग रहे हैं?
मैंने काफी समय तक इस प्रश्न के बारे में सोचा है, लेकिन उन्हें कोई शक्ल, कोई नाम नहीं दे पा रहा हूँ। अब तुम्हें इस प्रश्न का उत्तर देना है कि वे कौन लोग हैं?
यदि आपने मेरे इस प्रश्न का उत्तर सही–सही नहीं दिया, तो आपकी समूची सभ्यता और संस्कृति टुकड़े–टुकड़े हो जाएगी।