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लघुकथाएँ - देश - शैल वर्मा
मुश्किल काम?
कई महीने का किराया न मिलने पर मकान मालिक सतीश चेहरे पर तनाव लिये किराएदार के दरवाजे पर पहुँच गए।
‘‘दिनेश ओ दिनेश’’ थोड़ी देर में एक आठ नौ साल की लड़की निकली, ‘‘पापा बाहर गए हैं।’’
सतीश ने लड़की को ध्यान से देखा, ‘‘अरे बीनू तू भी आजकल नहीं दिखाई देती, इतनी दुबली क्यों हो गई, बीमार थी क्या?’’
नहीं मेरा दूध, फल सब मम्मी को दिया जाता है। मुझे घर का काम भी करना पड़ता है। मम्मी बेहोश हो जाती हैं। उनके हार्ट में मशीन लगनी है, पापा रुपये इकट्ठे कर रहे हैं, अभी पन्द्रह हजार कम पड़ रहा है।
सतीश का क्रोध हवा हो गया, ‘‘अच्छा दिनेश आए तो बता देना मुझसे मिल लेंगे। परेशान न हों ।मैं रुपये का इंतजाम कर दूँगा।’’
दिनेश एक–एक पैसा बचा रहा था। उसे पत्नी को बचाना था। वह मकान मालिक को आते देख कर कमरे में छिप गया था। आशा यही थी कि उसे मकान छोड़ देने की धमकी मिलेगी, लेकिन....सबसे मुश्किल काम है आदमी को पहचानना।
 
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