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लघुकथाएँ - देश - सतीश शुक्ल
स्वाभिमान
‘‘दीदी, मैं आपकी कार पर फटका मार दूँ।’’ एक दीन–हीन दिखने वाले छोटे–से बालक ने एक कॉलेज छात्रा से कहा।
‘‘चल फूट! मुझे अपनी कार साफ नहीं करानी।’’ छात्रा ने बेरुखी से जवाब दिया।
‘‘दीदी, मैंने आज सुबह से कुछ नहीं खाया है।’’ बच्चे ने बिसुरते हुए कहा।
‘‘तो ले ये दो रुपये, कुछ खा लेना।’’ छात्रा ने उसकी ओर दो का नोट बढ़ाते हुए कहा।
‘‘नहीं दीदी, मेरी बड़ी बहन मुझे मारेगी। भीख लेने से उसने सख्त मना किया है।’’ बालक के चेहरे पर स्वाभिमान की आभा चमक उठी थी।
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