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लघुकथाएँ - देश - संदीप गुप्ता
हमें गिनो
‘‘एक,दो, तीन....सात,आठ...दस।’’ चार साल की गिन्नी पाँचवी मंजिल पर खिड़की के पास खड़ी होकर रोज गिनती बोलती है। गिन्नी ने इसी साल स्कूल जाना शुरू किया है। स्कूल में टीचर रोज गिनती सिखाती और वह रोज शाम को खिड़की के पास खड़ी हो जाती। बाहर उसे दिखाई देते लम्बे–लम्बे पेड़ जो उससे बातें करते, कहते ‘‘हमें गिनो’’ और गिन्नी की गिनती शुरू हो जाती है, ‘‘एक,दो...पाँच...सात...दस एक, दो...मम्मी,मम्मी! दस पेड़ हैं।’’ गिन्नी दौड़ते–दौड़ते मम्मी के पास किचन में जाती और हाथ हिलाती हुई बताती।
‘‘फिर से गिनो तो बेटी’’ मम्मी उसे उत्साहित करती। गिन्नी फिर शुरू हो जाती है, ‘‘एक,दो,तीन....आठ,नौ, दस’’। लम्बे पेड़ हिलते रहते मानो गरदन हिलाकर कह रहे हों, ‘बिलकुल ठीक, बिलकुल ठीक।’’
धीरे–धीरे एक साल बीत गया। अब गिन्नी पेड़ के साथ–साथ चिड़िया भी गिनने लगी है। ‘‘छोटी चिड़िया ,बड़ी चिड़िया ,अच्छी चिड़िया गई।’’अंधेरा होने तक यही गीत वो गाती रहती। समय बीतता गया गिन्नी बड़ी होती गई, पेड़ों–पक्षियों को गिन्नी अब अलग–अलग पहचानने लगी है। चार आम के पेड़,पाँच ताड़ी के पेड़,तीन गुलमोहर,पाँच चिड़ियाँ ,छह कबूतर,तीन कौए,यह खेल उसे बहुत अच्छा लगता है। ‘‘कौआ काला होता है,गुलमोहर पर सुन्दर -सुन्दर फूल खिलते हैं।’’ स्कूल में टीचर पढ़ाती और वह घर आकर खिड़की के पास बैठ जाती। किताब खोलकर खिड़की से बाहर देखती हुई दोहराती, ‘‘काला कौआ,सुन्दर फूल।’’ उसे लगता मानो चित्र किताब से निकलकर बाहर आ गए हैं। कौआ किताब से बाहर आकर पेड़ पर आ बैठा है और कह रहा है, ‘‘चलो खेलें।’’अँधेरा होने पर गिन्नी धीरे से कहती, ‘‘चलो कौए अच्छर आकर किताब में बैठ जाओ ,रात हो गई है।’’ कौआ तुरन्त उड़कर अन्दर आता और किताब में घुस जाता, फिर वह धीरे से किताब बन्द कर देती।
समय बीतता गया, गुलमोहर और कौए वाली किताब की जगह विज्ञान,गणित, भूगोल की किताबों ने ले ली। खिड़की के सामने से एक–एक करके आम, ताड़ी,नीम सब पेड़ काट दिए गए, खिड़की से अब कौआ और पेड़ नहीं दिखते हैं। सामने एक चौड़ी सड़क दिखाई देती है जिस पर से गिन्नी के पापा रोज सुबह होंडा कार में ऑफिस जाते हैं। गिन्नी अभी भी रोज शाम को खिड़की के पास बैठती है और गिनने लगती है, ‘‘एक, दो....बारह, तेरह...चौबीस, पच्चीस।’’ पर अब वह नीम और ताड़ी के पेड़ नहीं गिनती और न ही कौए। सामने दूर–दूर तक ऊँची–ऊँची इमारतें दिखाई देती हैं, कोई पच्चीस मंजिला तो कोई पन्द्रह। शाम होते ही ये इमारतें चिल्लाने लगती है, ‘‘हमें गिनो,’’ और गिन्नी गिनने लगती है, ‘‘एक, दो, तीन....ग्यारह, बारह.....बीस।’’
 
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