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लघुकथाएँ - देश - सुकेश साहनी
चादर
दूसरे नगरों की तरह हमारे यहां भी खास तरह की चादरें लोगों में मुफ्त बाँटी जा रही थीं, जिन्हें ओढ़कर टोलियाँ पवित्र नगर को कूच कर रही थीं। इस तरह की चादर ओढ़ने–ओढ़ाने से मुझे सख्त चिढ़ थी, पर मुफ़्त चादर को मैंने यह सोचकर रख लिया था कि इसका कपड़ा कभी किसी काम आ जाएगा। उस दिन काम से लौटने पर मैंने देखा सुबह धोकर डाली चादर अभी सूखी नहीं थी। काम चलाने के लिए मैंने वही मुफ़्त में मिली चादर ओढ़ ली थी। लेटते ही गहरी नींद ने मुझे दबोच लिया था।
आंख खुली तो मैंने खुद को पवित्र नगर में पाया। यहाँ इतनी भीड़ थी कि आदमी पर आदमी चढ़ा जा रहा था। हरेक ने मेरी जैसी चादर ओढ़ रखी थी। उनके चेहरे तमतमा रहे थे। हवा में अपनी पताकाएँ फहराते जुलूस की शक्ल में वे तेजी से एक ओर बढ़े जा रहे थे। थोड़ी–थोड़ी देर बाद ‘पवित्र पर्वत’ के सम्मिलित उद्घोष से वातावरण गूँज उठा था। विचित्र–सा नशा मुझपर छाया हुआ था। न जाने किस शक्ति के पराभूत मैं भी उस यात्रा में शामिल था।
इस तरह चलते हुए कई दिन बीत गए पर हम कहीं नहीं पहुँचे। दरअसल हम वहाँ स्थित पवित्र पर्वत के चक्कर ही काट रहे थे।
‘‘हम कहाँ जा रहे हैं?’’ आखिर मैंने अपने आगे चल रहे व्यक्ति से पूछ लिया।
‘‘वह पवित्र पर्वत ही हमारी मंजिल है।’’ उसने पर्वत की चोटी की ओर संकेत करते हुए कहा।
‘‘हम वहां कब पहुँचेगे?’’
‘‘क्या बिना पवित्र चढ़ाई चढ़े उस ऊँचाई पर पहुँचना सम्भव होगा?’’ मैंने शंका जाहिर की।
इस पर वह बारगी सकपका गया, फिर मूंछें ऐंठते हुए सन्देह भरी नजरों से मुझे घूरने लगा।
तभी मेरी नजर उसकी चादर पर पड़ी। उस पर खून के दाग़ थे। मेरे शरीर में झुरझुरी -सी दौड़ गई। मैंने दूसरी चारों पर गौर किया तो सन्न रह गया- कुछ खून से लाल हो गई थीं और कुछ तो खून से तरबतर थीं। सभी लोग हट्टे–कट्टे थे, किसी को चोट -चपेट भी नहीं लगी थी और न ही वहाँ कोई खून–खराबा हुआ था, फिर उनकी चादरों पर ये खून....? देखने की बात यह थी कि जिसकी चादर जितनी ज्यादा खून से सनी हुई थी, वह इसके प्रति उतना ही बेपरवाह हो मूछें ऐंठ रहा था। यह देखकर मुझे झटका–सा लगा और मैं पवित्र नगर में निकल पड़़ा।
लौटते हुए मैंने देखा, पूरा देश दंगों की चपेट में था, लोगों को जिन्दा जलाया जा रहा था, हर कहीं खून–खराबा था। मैंने पहली बार अपनी चादर को ध्यान से देखा, उस पर भी खून के छींटे साफ दिखाई देने लगे थे। मैं सब कुछ समझ गया। मैंने क्षण उस खूनी चादर को अपने जिस्म से उतार फेंका।
 
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