वे कस्बे की माध्यमिक शाला में मामूली हैसियत वाले हिन्दी–संस्कृत के गुरुजी हैं। सेवा–निवृत्ति की राह पर तेजी से बढ़ रहे हैं । आज उनकी पत्नी ने जो कुछ कहा, सुनकर स्तब्ध हैं, चकित भी। उन्हें अपने सीमित गुरु–ज्ञान पर शर्म भी महसूस हुई।
हुआ यूं कि जिस चाल में वे रहते हैं, उसी में नीची जाति का मदन पत्नी के साथ रहता है। अनपढ़, शराबी–कबाबी मदन बीवी को अक्सर पीटता रहता है। गुरुजी की पत्नी इन लोगों से किसी प्रकार का सम्पर्क रखना तो अलहदा, उनसे बात करना भी पसंद नहीं करती थी। पूजा–पाठी होने से छूत–छात का भी खूब ध्यान रखती थी।
गत रात मदन की बीवी प्रसव–पीड़ा से छटपटा रही थी। पता नहीं, मदन पी–पाकर कहाँ औंधा सोया पड़ा था और पत्नी अकेली बुरी तरह कराह रही थी। गुरु–पत्नी कुछ देर तक सुनती रही। फिर लपक कर मदन के घर में पहुँच गई। देर रात तक मदन की बीवी की देखभाल, सेवा–सुश्रूषा करती रही। उसके पैर सहलाती, माथे का पसीना पोछती रही और ढाढस बँधाती रही। अपने घर से चाय और गर्म पानी लेकर आई। कोई सुबह चार बजे मदन की पत्नी ने एक प्यारे–से बच्चे को जन्म दिया। उसकी रोने की आवाज के साथ ही मदन–पत्नी की पीड़ा समाप्त हुई और उसने संतोष की साँस ली। गुरु–पत्नी ने हाथ जोड़ कर आकाश की ओर देखा। दो–तीन घंटे ठहर कर वह लौट आई।
रात भर से बेचैन गुरुजी ने आश्चर्य व्यक्त किया और पूछा,‘‘अरे! यह सब...! तुम तो उस शराबी–कबाबी से कितनी घृणा करती थी।’’
‘‘मैं शराबी–कबाबी और उसकी जात–पात को देखती कि उस औरत को जो पहली बार माँ बनने जा रही थी। न जाती तो मर जाती बेचारी! गुरुजी, क्या आपको भी बताना पड़ेगा कि हर धर्म में माँ एक–सी होती है और हर माँ का बस एक ही धर्म होता है।’’