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लघुकथाएँ - देश - हरदर्शन सहगल
देखो इधर भी
कैजुअल्टी रूम के बाहर स्वजनों की भीड़ थी। साथ ही कुम्हलाए चेहरे वाली एक लड़की, एक तरफ दुबकी खड़ी थी। वह घायल युवक की मंगेतर थी। घायल युवक की एक पड़ोसन बुढ़िया भी वहीं थी।
सर्जन बाहर आया। सबकी घबराई हुई नज़रें उस पर पड़ीं।
–थैंक्स गॉड। वंडरफुल। इतने भयानक एक्सीडेंट के बावजूद, जान बच गई।
–कैसे पाँव पड़ रहे हैं, इस कुलच्छनी के। परसों सगाई हुई और आज एक्सीडेंट! बुढ़िया ने मंगेतर युवती को तिरस्कार से देखा।
भावी सास ने फौरन आगे बढ़ कर बहू को गले लगा लिया–इसी के पैरों की महिमा, तो मेरे लाडले को बचा लाई है।
 
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